छात्र आत्महत्या से IAS तक: एक सच्ची प्रेरणादायक कहानी | Student Suicide to IAS Officer Success Story

छात्र आत्महत्या से IAS तक: एक सच्ची प्रेरणादायक कहानी | Student Suicide to IAS Officer Success Story

परिचय:-

क्या आपने कभी सोचा है कि जिंदगी में असफलता का सामना करते समय हम कितने अकेले हो जाते हैं? आज मैं आपको दिनेश की ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूं, जो हर उस छात्र के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो कभी असफलता के डर से टूट गया हो।  दिनेश एक मध्यमवर्गीय परिवार का मेधावी छात्र था। माता-पिता के सपने, समाज का दबाव, और लगातार तीन बार इंटरव्यू में असफलता ने उसे इस हद तक हताश कर दिया कि वह आत्महत्या करने का फैसला कर लेता है। लेकिन जो हुआ उसके बाद, वह इस कहानी को अविस्मरणीय बना देता है।  रेलवे ट्रैक पर खड़े दिनेश के सामने ट्रेन आ रही थी... और फिर अचानक एक दिव्यांग व्यक्ति उसकी जिंदगी में आया। जानिए कैसे एक अजनबी ने न सिर्फ दिनेश की जान बचाई, बल्कि उसे IAS अधिकारी बनने तक का रास्ता दिखाया।  यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए उम्मीद की किरण है जो जिंदगी से हार मान बैठा है।

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दिनेश अपने कंपटीशन पेपर की तैयारी के लिए शहर आता है.ताकि उसे बेहतर साधन मिले और पढ़ाई के लिए वह अपना पेपर क्लियर करके जल्द ही नौकरी लग जाए.वैसे दिनेश पढ़ाई में इंटेलिजेंट होता है माता-पिता को भी उसे उम्मीदें ज्यादा होती है सभी चाहने वालों को भी ऐसा लगता जैसे दिनेश जल्द कामयाब हो जाएगा.दिनेश पूरे जोश के साथ अपनी पढ़ाई में लग जाता है लेकिन कंपटीशन पेपर पास करना कोई आसान काम तो है नहीं दिनेश लगातार 2 साल की पढ़ाई करता है और वह पेपर पास कर लेता है दिनेश जब यह खबर अपने माता-पिता को बताता है तो वह बहुत खुश हो जाते हैं सोचते हैं अब तो दिनेश जल्द ही नौकरी लग जाए घर में कुछ मदद हो जाएगी मिडिल क्लास परिवार का यही हाल है। बच्चों की पढ़ाई मेंअपना सब कुछ लगा देते हैं।बच्चों की पढ़ाई करवाने मे मां-बाप की कमर टूट जाती है वह अपना सब कुछ अपने बच्चों की पढ़ाई में लगा देते हैं.दिनेश का पेपर तो पास हो गया लेकिन इंटरव्यू में रह गया दिनेश तीन बार इंटरव्यू में रह जाता है आसपास पड़ोस वाले भी दिनेश के मां-बाप को बातें सुनने लग जाते हैं दिनेश से कुछ नहीं होगा क्यों उस पर अपने पैसे बर्बाद कर रहे हो लेकिन एक मां-बाप ऐसे कैसे कह सकते हैं.मां-बाप तो अपने बच्चों को हमेशा प्रोत्साहित ही करते हैं वे  दिनेश को कहते हैं तुम घर की चिंता मत करो अपनी पढ़ाई अच्छे से करो और मेहनत करो लेकिन हकीकत में तो वह भी आर्थिक रूप से परेशान थे.दिनेश ने अपनी तैयारी में 6 साल लगा दिए लेकिन वह गवर्नमेंट जॉब नहीं पा सका लोगों की बात सुनकर दिनेश के मां-बाप भी परेशान हो जाते हैं.उधर दिनेश भी बार-बार असफल होकर हताश हो चुका था क्योंकि उसे पता है हमारे घर की कंडीशन क्या है और मुझे पर कितना पैसा लग रहा है वैसे दिनेश थोड़ा बहुत कम रहा था ताकि वह घर से पैसे ना मांगे लेकिन फिर भी उसे पैसों की जरूरत पड़ ही जाती थी क्योंकि शहर में हर चीज महंगी थी.गांव और शहर के खर्चों में बहुत फर्क होता है लोगों की बात सुन सुनकर एक दिन पापा  दिनेश को बोल देते हैं तुम घर आ जाओ हमारे पास और पैसे नहीं है तुम पर लगाने के लिए.उन्हें पता है दिनेश ने खूब मेहनत की है कई लोगों से तो पेपर भी पास नहीं होता है लेकिन दिनेश ने तीन बार पेपर पास किया है.कोई भी मां-बाप अपने बच्चों से यह नहीं कहना चाहते हैं कि उनके बच्चों से कुछ नहीं होगा लेकिन लोगों की बात सुनकर उनका भरोसा साथ छोड़ देता है कहते हैं अगर पत्थर पर से रस्सी बार-बार जाती है तो पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं ऐसा ही कुछ दिनेश के मां-बाप के साथ हुआ.दिनेश अपना सारा सामान पैक करके गांव जाने की तैयारी कर लेता है दिनेश सोचता है मेरे मां-बाप ने मुझ पर कितना भरोसा किया कि मैं एक दिन में कामयाब हो जाऊंगा लेकिन मैं कुछ ना कर सका अब मैं गांव में कैसे जाऊं लोग मेरे मां-बाप को बातें सुनाएंगे।कहेंगे क्या आपका बेटा नौकरी लग गया मैं अपने माता-पिता की शर्मिंदगी का कारण नहीं बनना चाहता.दिनेश पहले ही हताश हो चुका था.अब उसके अंदर जो तूफान उठ रहा था उसे लग रहा था जैसे अब वह कुछ नहीं कर सकता वह अपने परिवार पर बोझ है उसे मर जाना चाहिए दिनेश अपने आप से हार चुका था वह एक पेपर पर लिखकर छोड़ देता है। मम्मी पापा मुझे माफ कर देना  और रेलवे ट्रैक की तरफ बढ़ने लगता है जिस ट्रैक पर वह चल रहा था.उसके सामने से ट्रेन आ रही थी वहां पर अपाहिज आदमी गुब्बारे बेच रहा था उसकी नजर दिनेश पर पड़ती है वह समझ गया कि वह लड़का आत्महत्या करने जा रहा है वह अपनी स्कूटी पर जा कर दिनेश को एक तरफ खींचता है और ट्रेन को जाने देता है जब ट्रेन चली जाती है तो वह व्यक्ति दिनेश से पूछता है यह तुम क्या करने जा रहे थे.दिनेश कहता है हां मैं जानता हूं  मैं क्या कर रहा था? लेकिन मैं जीना नहीं चाहता मैं अपनी फैमिली पर बोझ नहीं बनना चाहता इसलिए मैं आत्महत्या करना चाहता हूं.यह मेरी मर्जी नहीं मजबूरी है  मेरे माता-पिता को मुझे बहुत उम्मीद थी और मैं कुछ नहीं कर पाया दिनेश वहां से जाने लगता है वह व्यक्ति दिनेश को रोकता है.वह आदमी उसे देखकर समझ जाता है कि यह अपनी हिम्मत हार गया है इसकी जीने की इच्छा खत्म हो गई है यह आज तो बच गया है लेकिन यह आगे भी कुछ ऐसा ही करेगा.वह व्यक्ति( रमेश) दिनेश से बातें करता है वह उससे बातों बातों में पूछ लेता है तुम सुसाइड क्यों करना चाहते हो दिनेश सब बता देता है रमेश कहता है मैंने 8 साल लगाए थे आईपीएस बनने में और मैं एक दिन आईपीएस बन गया.अपनी पोस्टिंग ज्वाइन करने जा रहा था और रास्ते में मेरा एक्सीडेंट हो गया । मेरा भी मन करता कि मैं मर जाऊं मैं सोचता की मैं उसी  एक्सीडेंट मे मर क्यों नहीं गया मैंने अपने मां से कहा मां इससे अच्छा होता अगर मैं मर जाता कम से कम आप पर बोझ तो  नहीं बनता मेरी मां ने मुझसे कहा क्या सारी दुनिया नौकरी लगी हुई है तेरे पापा नौकरी करते हैं दुनिया मैं कितने ऐसे लोग हैं जो शरीर से कमजोर है लेकिन उनमें दिमागऔर हिम्मत बहुत है और अपना सामान्य जीवन जीते हैं  और जिसे तू बोझ कह रहा है ना यह तो हमारा अच्छा नसीब है जो तू हमारे साथ है. हमें कुछ भी हो जाए तो तू जमीन आसमान एक कर देता है बेटा बोझ तो वह होता है जब तू हमारे आगे यह दुनिया छोड़कर चला जाता.हम उस बोझअच्छा। के नीचे हमेशा के लिए दब जाते कि अपने बेटे को बचा नहीं सके तब हर एक दिन हमें मौत से भयानक लगता.अब तुम बताओ दिनेश क्या मुझे जीने का अधिकार है अगर मैं मर भी जाऊं तो मेरे मां-बाप को कौन सा भला हो जाता वे तो जीते जी मर जाते वह हर रोज मरते मेरी यादमें । घुट घुट कर जीते जो मौत से भी भयानक होता.जरा सोचो अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो तुम्हारी फैमिली शर्मिंदा नहीं होगी तुम्हारे बाद उनका क्या होगा शायद वह तुम्हारे जाने का सदमा बर्दाश्त ना कर पाए. मरने के बाद तुम अपने मां-बाप के लिए क्या कुछ अच्छा कर जाओगे नहीं। बल्कि ज्यादा ही दुख के अंधेरे में धकेल दोगे वह पल-पल तुम्हारी याद में रोते रहेंगे.अगर तुम उनके लिए कुछ करना ही चाहते हो तो उनके अच्छे से ध्यान रखो अगर जॉब नहीं मिलती तो कुछ और काम करो अपने माता-पिता के लिए एक बेटे की जिम्मेदारी को पूरा करो अगर तुम इस जिम्मेदारी में असफल होते हो तो तुम खुद को असफल मानना यह पढ़ाई वाली परीक्षाएं तो पता नहीं कितनी होती है इन परीक्षाओं में पास होना इतना जरूरी नहीं है। जितना जिंदगी की परीक्षा में पास होना जरूरी है जिसमें तुम बिना परीक्षा के फेल होने जा रहे थे.दिनेश को रमेश से बात करके अपना सा लगा उसने सोचा जिस व्यक्ति ने सब प्रकार से अपने सपनों को खो दिया वह इंसान अपनी जिंदगी पूरे उत्साह से जी रहा है मैं तो फिर भी ठीक हूं रमेश दिनेश को कहता है अगर तुम्हें मेरी जरूरत है  अपनी जिंदगी की लड़ाई लड़ने के लिए तो मैं तुम्हारी हर संभव मदद करूंगा.तुम्हें बुक चाहिए या पढ़ाई के बारे में मदद ले सकते हो दिनेश कहता है क्या आप मुझे इंटरव्यू के लिए तैयार कर सकते हो  रमेश   दिनेश की पूरी मदद करता है वो व्यक्ति (रमेश) दिनेश को इंटरव्यू के लिए अच्छे से तैयार कर देता है रमेश हर रोज नए-नए व्यक्ति बुलाते हैं दिनेश के इंटरव्यू के लिए और उनकी मेहनत सफल होती है और दिनेश इंटरव्यू पास कर लेता है. और वो एक आईएएस ऑफिसर बन जाता है। वह रमेश के गले लग कर रोने लगता है.रमेश पूछता है क्या हुआ दिनेश कहता है थैंक यू भैया आपने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है मैं इंटरव्यू में पास हो गया हूं.यह सब करने की हिम्मत मुझ में आप ही से आई है थैंक यू भैया आप मेरे लिए प्रेरणा स्रोत हो.अगर उस समय दिनेश को रमेश का साथ नहीं मिलता तो  दिनेश एक हताश व्यक्ति का जीवन जीता।दिनेश को तो प्रेरणा स्रोत के रूप में रमेश मिल गया। हर किसी की जिंदगी में रमेश से नही आता इसलिए पढ़ाई में फेल हो जाओ, लेकिन कभी भी अपनी जिंदगी की परीक्षा में फेल मत होना।

FAQ:

प्रश्न 1: क्या यह कहानी सच्ची है?
उत्तर: यह कहानी वास्तविक घटनाओं और अनुभवों पर आधारित है। हजारों छात्र इसी तरह के संघर्ष से गुजरते हैं।

प्रश्न 2: कितनी बार असफल होने के बाद दिनेश ने हार मान ली?
उत्तर: दिनेश ने पेपर तो पास कर लिया था लेकिन तीन बार इंटरव्यू में असफल होने के बाद उसने हार मान ली।

प्रश्न 3: रमेश कौन था और उसने कैसे मदद की?
उत्तर: रमेश एक दिव्यांग व्यक्ति था जो पहले IPS अधिकारी बनने जा रहा था लेकिन दुर्घटना में विकलांग हो गया। उसने दिनेश को जीवन का सही मतलब समझाया और इंटरव्यू की तैयारी कराई।

प्रश्न 4: इस कहानी से क्या सीख मिलती है?
उत्तर: यह कहानी सिखाती है कि असफलता जीवन का अंत नहीं है। हर व्यक्ति के जीवन में चुनौतियां होती हैं, लेकिन हार न मानना ही सफलता की कुंजी है।

प्रश्न 5: छात्रों के लिए इस कहानी का क्या संदेश है?
उत्तर: छात्रों के लिए संदेश यह है कि परीक्षा में फेल होना जिंदगी में फेल होना नहीं है। धैर्य रखें, मेहनत करते रहें और कभी हार न मानें।

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