रोहनात गांव: 1857 की क्रांति का भूला हुआ बागी गांव | 166 साल बाद भी इंतज़ार में है न्याय का

 रोहनात गांव: 1857 की क्रांति का भूला हुआ बागी गांव | 166 साल बाद भी इंतज़ार में है न्याय का

परिचय:-

क्या आपने कभी सोचा है कि कोई गांव 70 साल तक अपने ही देश का झंडा क्यों नहीं फहराता? हरियाणा के भिवानी जिले में एक ऐसा गांव है जिसकी कहानी सुनकर आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे। यह है रोहनात गांव - जिसे अंग्रेजों ने 'बागी गांव' का नाम दिया था।

1857 की क्रांति में इस गांव के लोगों ने जो कुर्बानी दी, वो इतिहास के पन्नों में दफन हो गई। अंग्रेजों का बदला इतना क्रूर था कि आज 166 साल बाद भी इस गांव के लोग उस सदमे से उबर नहीं पाए हैं।

29 मई 1857 को इस गांव के वीरों ने हिसार जेल तोड़कर कैदियों को आजाद कराया था। हांसी में 11 अंग्रेज अफसरों को मार गिराया था। लेकिन इसकी सजा... इसकी सजा इतनी भयानक थी कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

तो चलिए आज जानते हैं उस गांव की कहानी जिसने आजादी के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया, लेकिन बदले में मिला सिर्फ दर्द और इंतज़ार...

Historical 1857 Revolt Scene Rohnat Village


1857 की क्रान्ति मे हरियाणा का एक गांव रोहनात गांव भी  शामिल था।जिसे इतिहास में उचित स्थान नहीं मिला  था।आजादी के बाद इस गांव को बागी गांव कहा  जाने लगा।क्योंकि इस गांव के लोग इतिहास में अपना उचित स्थान की मांग कर रहे थे।और 23 मार्च 2018 से पहले यहाँ कभी भी आजादी का जश्न नहीं मनाया गया और ना ही इस गांव में कभी राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया।इस गांव के लोग आजादी के लिए लड़ते  के बावजूद भी उन्हें अपने गांव में जमीन तक नहीं मिली।आज इसी गांव की कहानी जानते हैं शुरू करते हैं।1857 की क्रान्ति  इस क्रांति के बारे में हर भारतीय जनता है। जो सिपाही विद्रोह या प्रथम स्वतंत्रता विद्रोह था।यह भारत में अंग्रेजों के खिलाफ़ पहला विद्रोह था। इस विद्रोह के कई कारण थे।जैसे राजनीतिक विलय जिस राजा के कोई संतान न होती उसके  राज्य को अंग्रेजी शासन में मिला लिया जाता।( 2)आर्थिक शोषण।अंग्रेजी भारतीयों से जरूरत से ज्यादा कर वसूल क्या करती थी।और अंग्रेजों के अनुसार काम करना।(3)सामाजिक अशांति। अंग्रेजों ने भारतीय समाज के पारंपरिक चलन और धार्मिक मान्यताओं को बाधित किया।और औरतों के साथ गलत व्यवहार किया जाता।और उनसे जबरदस्ती अपने घरों में काम करवाया जाता। जिससे समाज में अशांति फैली। (4)सैन्य शिकायत।अंग्रेजों  ने भारतीय सेना को चर्बी वाले कारतूस उपयोग करने के लिए दिए। जब भारतीय सेना ने  इनका उपयोग करने से मना कर दिया तो भारतीय सैनिकों को दो से 10 साल की कैद की सजा सुनाई गयी। 1857 की क्रांति में शामिल प्रमुख नायक मंगल पांडे,बहादुर शाह जफर, नाना साहिब,रानी लक्ष्मी बाई, बेगम हजरत महल, तात्या टोपे,मौलवी अहमदुल्ला शाह,  बक्त खान,कुंवरसिंह,बिराजिस कद्र,रानी अवंतीबाई लोधी।और एक पूरा का पूरा गांव जिसका नाम इतिहास में नहीं है, वो हरियाणा का रोहनात गांव हैं।इस विद्रोह की शुरुआत 29 मार्च 1857 को कलकत्ता के पास बैरकपुर में हुई थी।ये सेना का उत्पीड़न एक बड़ा ज्वालामुखी बनकर फूटा था।जहाँ एक भारतीय सैनिक मंगल पांडे ने अंग्रेजी  अधिकारी को गोली मार दीथी।वो बाती सेना के साथ हुए दुर्व्यवहार का बदला लेने के लिए कार्य किया था।मंगल पांडे  को पकड़ लिया गया था और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।मंगल पांडे की फांसी की खबर पूरे देश में फैल गई थी।और ये संग्राम राजा ,सेना से आम लोगों तक फैल गया।सभी लोग अंग्रेजी शासन के शोषण का शिकार थे।सब लोगों के अंदर  अंग्रेजी शासन के खिलाफ़ जो चिंगारी दबी हुई थी, वो 1857 में एक आग का रूप ले चुकी थी। 1857 का विद्रोह सैन्य और नागरिक विद्रोह का एक खतरनाक मिश्रण था।जिसने उत्तरी और मध्य भारत में ब्रिटिश शासन के लिए खतरा पैदा कर दिया।ये संग्राम पूरे शहर में फैल गया। और आम जनता भी सिपाहियों के साथ जुड़ गईं।29मई को बहादुर शाह जफर के आदेश पर रोहनात गांव के वीर योद्धाओं ने अंग्रेजी हुकूमत कि ईंट से ईंट बजा दी थी। इस दिन ग्रामीणों ने जेल में घुसकर कैदियों को आजाद करवाया था। हिसार12 और हाँसी में 11 अंग्रेज अफसरों को मार गिराया था। गुस्से में आई अंग्रेज सेना ने इस गांव में बरबर नरसंहार किया था।अंग्रेजों ने बदला लेने के लिए तोप चलाकर गांव वालों को बुरी तरह भून डरा। सैकड़ों लोग जलकर मर गए फिर भी ग्रामीण लड़ते रहे।यहाँ के लोग बिना किसी हथियार सेअंग्रेजों के सामने निडर होकर खड़े रहे। गांव को तबाह करने के बाद भी अंग्रेजों का अत्याचार आचार नहीं रुका।ये उन्होंने महिलाओं और बच्चों को कुएं में फेंक दिया। दर्जनों लोगों को जोहड़ के पास पेड़ पर फांसी पर लटका दिया।हुए और पेट आज भी अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों के जीते जागते सबूत है।अंग्रेजी सेना ने इस गांव को पूरी तरह तहस नहस कर दिया। इस गांव को तबाह करने के लिए आठ तोप  दागी गयी थी।जो लोग बच गए थे, उन्हें गोलियों से भून दिया गया। अंग्रेजी सेना का सबसे बर्बर कार्य वो था। जब इस गांव की क्रांतिकारी लोगों को हाँसी जाने वाले रास्तों में बुलडोजर से कुचल दिया गया।जिससे ये पूरा रास्तारक्तरंजित हो गया।और इसका नाम लाल सड़क पड़ गया।महिलाओं ने अंग्रेज़ों से बचने के लिए गांव में स्थित ऐतिहासिक कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली  थी।अंग्रेजों ने इस गांव को पूरी तरह से तहस नहस करके खत्म कर दिया था।14 सितंबर 1857 को अंग्रेजों ने इस गांव को बागी घोषित कर दिया।13 नवंबर1857 को पूरे गांव की नीलामी के आदेश दे दिए।20 जुलाई1858 को इस गांव के घर और जमीन नीलाम कर दिए गए।इस जमीन को आसपास के पांच गांव के 61 लोगों ने₹8000 की बोली लगाकर खरीद लिया।अंग्रेज यही पर  नहीं रुके।अंग्रेजी सरकार ने एक फरमान और जारी किया।इस फरमान के अनुसार भविष्य में यह जमीन रोहनात के लोगों को नहीं बेची जाए। रोहनात  गांव के लोगों के साथ इतना बुरा क्यों हुआ?वे अंग्रेजों से लड़े इसलिए?या फिर उन्हें अपने देशवासियों का साथ दिया?उसकी सजा मिली एक पूरा गांव अंग्रेजों के गुस्से की बलि चढ़ गया। जिन गांव वालों ने आजादी के संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते हुएअपने प्राणों के आहुती तक दे दी। उन्हें अपने गांव की जमीन तक नहीं मिली।।कैसे अंग्रेजी सेना ने इस गांव को तबाह किया था?कैसे महिला, बुजुर्ग और बच्चे गांव छोड़कर भाग गए थे?यहाँ अंधाधुंध गोलियां चली थी।इस घटना के महीनों बाद भी इस गांव में कोई इंसान नहीं दिखा।लेकिन समय के साथ धीरे धीरे हालात सामान्य होते गए।यहाँ के लोगों ने अपने रिश्तेदारों के नाम से जमीन खरीदी और यहाँ पर वापस रहने लगे।क्योंकि अंग्रेजों के फरमान के अनुसार इस गांव के लोग ये जमीन नहीं खरीद सकते थे।इस गांव के लोग अपने ही गांव में शरणार्थी की तरह रहे। 

150 साल बाद भी इस गांव के लोग सदमे से उबर नहीं पाए।गांव के बुजुर्गों को कुआं देखकर वह खौफनाक कहानी याद आ जाती है। इसी बात से नाराज होकर ग्रामीणों ने यहाँ कभी झंडा नहीं फहराया।कुछ समय पहले तक भी कुछ जमीन को लेकर विवाद था। वर्तमान सरकार ने इस विवाद को सुलझाया। इसके बाद 23 मार्च 2018 को पहली बार मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने गांव के बुजुर्गों के हाथों राष्ट्रीय ध्वज फहराकर गांव के लोगों को गुलामी की भावना से मुक्ति दिलाई।अब हर देशवासी  रोहनात गांव के बुजुर्गों के बलिदान और योगदान के महत्त्व को जानता है। और इसी योगदान को दर्शाने के लिए ( दास्तानें ए रहनात नाटक बनाया गया) इस नाटक में1857 क्रान्ति में रोहनात गांव के वीर बाँकुरो  के बलिदान को दर्शाया गया है।

FAQ:-

प्रश्न 1: रोहनात गांव को 'बागी गांव' क्यों कहा जाता था?
उत्तर: 1857 की क्रांति में भाग लेने के बाद अंग्रेजों ने इसे 'विलेज ऑफ रिबेल्स' यानी बागी गांव घोषित किया था।

प्रश्न 2: इस गांव में 70 साल तक तिरंगा क्यों नहीं फहराया गया?
उत्तर: गांववाले मानते थे कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलता और उनकी जमीन वापस नहीं मिलती, तब तक वे गुलाम ही हैं।

प्रश्न 3: 2018 में पहली बार झंडा किसने फहराया?
उत्तर: 23 मार्च 2018 को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने गांव के बुजुर्गों के साथ मिलकर तिरंगा फहराया।

प्रश्न 4: लाल सड़क का नाम क्यों पड़ा?
उत्तर: हांसी में जिस सड़क पर रोड रोलर से गांववालों को कुचला गया, वो खून से लाल हो गई थी, इसलिए इसका नाम लाल सड़क पड़ा।

प्रश्न 5: इस गांव की कहानी को कैसे याद रखा जा रहा है?
उत्तर: 'दास्तान-ए-रोहनात' नाटक बनाया गया है और NCERT की किताबों में भी इस गांव का इतिहास शामिल किया गया है।

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