अज्ञात वीरांगना: रानी नायकी देवी की कहानी, जिसने मोहम्मद गौरी को पराजित कर भारतीय इतिहास बदल दिया

अज्ञात वीरांगना: रानी नायकी देवी की कहानी, जिसने मोहम्मद गौरी को पराजित कर भारतीय इतिहास बदल दिया

परिचय:-

क्या आप जानते हैं भारतीय इतिहास की उस अद्भुत और साहसी रानी के बारे में, जिसकी वीरता और सैन्य रणनीति ने एक विदेशी आक्रमणकारी को भारत की सीमाओं से पीछे भागने पर मजबूर कर दिया? रानी नायकी देवी, जो बेहतरीन तलवारबाज, कुशल घुड़सवार, सूझ-बूझ वाली राजनीतिज्ञ और महान योद्धा थीं, अपने छोटे बेटे को गोद में लेकर युद्धभूमि में उतरीं और मोहम्मद गौरी जैसे शक्तिशाली शासक को पटखनी दी। ये कहानी सिर्फ युद्ध की नहीं, बल्कि साहस, समर्पण और भारत की मिट्टी की शौर्यगाथा है — जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गई थी!

Queen Naiki Devi Leading Her Army to Defeat Muhammad Ghori – Forgotten Heroine of Indian History


इतिहास की ऐसी महिला योद्धा जो इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गई। जिसे लोग कम ही जानते हैं।जिसने अपनी सैन्य रणनीति और कूटनीति से मोहम्मद गौरी को भी पराजित किया।जो काम बड़े बड़े योद्धा नहीं कर पाए थे।वो काम नायकी  देवी ने अपने साहस और वीरता से पूरा किया।आइए जानें उस साहसी योद्धा नायकी देवी के बारे  में।नायकी देवी गोवा के राजा कंदब की पुत्री थी जिसमें बाहु बल ही नहीं अतुल्य साहस भरा हुआ था।जो दिल्ली पर हिंदुत्व का झंडा देखना चाहती थी।जो तलवारबाजी, घुड़सवार सेना, सैन्य रणनीति, कूटनीति और राजकाज अन्य सभी विषयों में पारंगत थी। उनका विवाह गुजरात के राजा अजयपाल चालुक्य ( सोलंकी) से हुआ। जो सिद्धराज जै सिंह के पौत्र और कुमार पाल के पुत्र थे, उस समय गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ा पाटन थी, जो उस समय का सबसे अधिक आबादी वाला  खुशहाल और समृद्ध शहर था।जिसकी आबादी लगभग 1,00,000 थी, जो अमेरिकी इतिहासकार।चांडलर के अनुसार है।नायकी देवी उस समय अपने गृहस्थ जीवन में व्यस्त थी पुत्र होने के बाद तो पूरे राज्य में खुशी की लहर थी। और दूसरी तरफ़ मोहम्मद गौरी अपने बुरे इरादे के साथ भारत की तरफ बढ़ रहा था। 1173 में अफगानिस्तान पर विजय पाकर एक महत्त्वकांक्षी शासक के रूप में भारत के भीतरी क्षेत्रों पर सफलतापूर्वक आक्रमण किया। जो सिकंदर की सेना,फारसी, अरबी और महमूद गजनी भी नहीं कर पाए थे।वो काम मोहम्मद गौरी ने किया।उसका पहला महत्वपूर्ण हमला 1175 ईस्वी में मुल्तान और ऊच। पर हमला करके उसके किलो पर कब्जा करना था। जिसकी नीयत  भारत में मुस्लिम समुदाय स्थापित करना था।उसने मुल्तान और उच पर कब्जा करके भारत में अपने पांव जमा लिए थे। चालुक्य  वन्शी( सोलंकी) अजय पाल सोलंकी और नायकी देवी अपने बेटे के साथ बहुत खुश थे। वे उसके पालन पोषण में लगे हुए थे।लेकिन उनकी खुशी ज्यादा दिन न टिक पाई।अजयपाल के अंगरक्षकों ने ही अजयपाल की हत्या कर दी।जब गुजरात राज्य अंधकार में डूबने लगा।अपने राज्य को बचाने और उसे स्वतंत्र रखने के लिए।अपने 3 साल के बेटे मूलराज भीमदेव द्वितीय।को राजगदी पर बैठाकर राज्य की शासन व्यवस्था को अपने हाथ में लिया।भीमदेव की उम्र कम होने के कारण नायकी  देवी ने राज्य की शासक के रूप में शासन किया था। मोहम्मद गौरी ने मुल्तान से सिन्ध के रास्ते दक्षिणी राजपूताना गुजरात की तरफ अपना रुख किया।उसने की अन्हिलवाड़ा पाटन समृद्ध किलेबंद शहर को अपना निशाना बनाना चाहा।शायद उसे गुजरात की शासन व्यवस्था कमजोर लगी।क्योंकि उस समय राज्य की शासन व्यवस्था एक  नारी के हाथ में थी।उसने सोचा एक छोटा बालक और एक महिला मेरा क्या बिगाड़ लेगी।वहाँ तो मेरी जीत आसानी से हो जाएगी।क्योंकि उसके आगे अच्छे अच्छे वीर योद्धा भी नहीं टिक पाए थे।इसलिए वो पूरेआत्मविश्वास के साथ वह गुजरातकी तरफ बढ़ रहा था।जब नायकी देवी को मोहम्मद गौरी की इरादों के बारे में खबर हुई तो उसने आपातकालीन बैठक कीऔर अपनी सभी सेनापति और मंत्रियों को बुलाया।अपनी सेना और मोहम्मद गौरी की सेना की पूरी जानकारी ली।उसे पता लगा कि मोहम्मद गौरी की सेना बहुत ज्यादा है।इसलिए वो अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए पृथ्वीराज चौहान और आसपास के अन्य प्रांतों से सहायता के लिए अपने राजदूत के द्वारा सन्देश में भेजा। हम आपसी लड़ाई तो बाद में भी लड़ लेंगे, लेकिन एक विदेशी को सबक सीखाना जरूरी है।ताकि कोई विदेशी भारत पर बुरी नजर ना डाल सके।लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने नायकी देवी का साथ देने से मना कर दिया।मगर नायकी देवी  नहडूला चाहमान वंश , जालोर चाहमान वंश और अर्बुदा परमार वंश केनेताओं का साथ लेने में सफल हुई।उन्होंने भी एक विदेशी को अपने भारत से बाहर भगा देना ज्यादा जरूरी लगा  इसलिए आपसी मतभेद भूलकर  एक साथ मिलकर युद्ध करने के लिए।नायकी देवी के ध्वज के नीचे आए।उन्होंने एक नारी के नेतृत्व में युद्ध करने से कोई आपत्ति नहीं थी।क्योंकि उन्हें पता था, नायकी देवी एक कुशल योद्धा हैं क्योंकि वे लोग नायकी देवी के बारे में पहले से ही पता था वो साहसी और वीर योद्धा है। उसकी कूटनीति और रणनीति का कोई जवाब नहीं।इसलिए सब नायक देवी की वीरता पर भरोसा करके सब एक ध्वज के नीचे खड़े थे।नायकी देवी को पता था।यह सैन्य बल मोहम्मद गौरी को हराने के लिए पर्याप्त नहीं है।अगर आमने सामने।की लड़ाई हुई तो हम हार जाएंगे, क्योंकि जिसकी सेना ज्यादा होती है ,जीत  भी उसी की होती है।इसलिए वे आमने सामने की लड़ाई नहीं लड़ सकते थे। इसलिए नायकी देवी ने मोहम्मद गौरी की सेना की संख्याऔर उनकी कमजोरी समझकर एक योग्य रणनीति तैयार की।अपने योग्य कूटनीति के कारण नायकी देवी ने युद्ध के लिए ऐसा स्थान चुना जो मोहम्मद गौरी की सेना के लिए समझना मुश्किल था।नायकी देवी कहती हैं, वह गुजरात पर राज़ करना चाहता है। हम उसे गुजरात से पहले ही रोक देंगे। उसे गुजरात तक आने अंदर तक नहीं आने देंगे। राज़ करना तो बहुत दूर की बात है। नाही की देवी का एक एक शब्द उसकी सेना में जोश भर रहा था।और जय भारत के नारे लगा रहे थे।ये युद्ध अपने राज्य को बचाने के साथ साथ भारत से विदेशियों को निकालने के लिए भी था।अगर उनका भारत के वित्तीय क्षेत्रों में कब्ज़ा हो गया तो जल्द ही वे भारत को गुलाम बना सकते थे।इसलिए भारत की स्वतंत्रता के लिए इससे सबक सीखाना जरूरी था ताकि कोई और विदेशी।आक्रमणकारी भारत पर नजर ना डाले।इसीलिए उसने छापा युद्ध नीती अपनाई।युद्ध  के लिये माउंट आबू की तलहटी कयादरा गांव ( आधुनिकसिरोही जिला )के पास गदर घट्टा के संकरी पहाड़ी दर्रे का स्थल चुना।ये स्थल मोहम्मद गौरी की सेना से अपरिचित था।जबकि नायकी देवी की सेनाइस जगह से भली भाँति आवगत थी।जो नायकी देवी की सेना के लिए लाभकारी साबित हुआ। इस रणनीति से नायकी देवी की सेना की बहुत सारी बाधाएं कम हो गई थी।जब मोहम्मद गौरी की सेना संकरी पहाड़ी दर्रे से गुजर रही थी। उस स्थान पर एक साथ ज्यादा संख्या में सेना नहीं गुजर सकती थी।इस बात का लाभ उठाकर।उन पर हमला बोला। वीर योद्धा  नायकी  देवी अपने बेटे को गोद में लेकर युद्ध में उतरीं और उसने अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए मोहम्मद गौरी सेना को माउंटआबू की तलहटी मे रोकाऔर उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया। नायकी देवी ने अपनी वीरता और रणनीति के दम पर उसने मोहम्मद गौरी कोअपने कही वचन के अनुसार गुजरात  से पहले पराजित किया। मोहम्मद गोरी जो गुजरात में राज़ करने के लिए आ रहा था। उसे गुजरात कि सीमा पर कदम तक नहीं रखने दिया।ये मोहम्मद गौरी की पहली बड़ी हार थी।और मोहम्मद गौरी को हार का सामना करके वहाँ से वापस लौटना पड़ा।ये हार मोहम्मद गौरी की इतनी बड़ी हार थी कि उसने 13 साल तक भारत की तरफ।लौटने की कोशिश नहीं की।हिंदुस्तान पर हिंदुत्व की पताका लहराती रही।नायकी देवी ने कुछ समय के लिए मोहम्मद गौरी को रोक दिया।उसके शासनकाल में  मोहम्मद गौरी  ने दोबारा कभी गुजरात पर हमला नहीं किया। बाद मुहम्मद गौरी ने 13 साल बाद तराइन पर हमला किया था।के रास्ते न आकर पंजाब के रास्ते तराई तक पहुंचा था।लेकिन इतने बड़े अंतराल में भारत पर हमला करने वाले विदेशियों आक्रमणकारियों की कोई कमी नहीं थी।क्योंकि कभी ना कभी कहीं ना कहीं कोई बाहरी आक्रमण होता रहता था।लेकिन मोहम्मद गौरी पर जीती  ये चालुक्य वंश की बड़ी जीत थी। जिसने अपने राज्य को बचाया। इस युद्ध के बाद नायकी  देवी की वीरता और रणनीति की प्रशंसा की जाने लगी। वो एक वीर महिला योद्धा के रूप में उभर कर आई।जो अपने बेटे को गोद में लेकर एक शक्तिशाली दुश्मन से भीड़ गईं। अपने साहस और वीरता से उसेअपने राज्य से बाहर किया। नमन है ऐसी वीर  योद्धाओं  को जिसने अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिएअतुल्य पराक्रम का परिचय दिया। नायिका देवी जैसे वीर योद्धा के बारे में सब को पता होना चाहिए।एक बड़े आक्रमणकारी को अपने राज्य से बाहर खदेड़ा।और देश में  मुस्लिम समुदाय को स्थापित होने से रोका। एक झांसी की रानी जो 1857के संग्राम में अपने बेटे को साथ  लेकरअंग्रेजों से युद्ध किया।जिससे देश का बच्चा बच्चा जानता है।और 1178 मैं नायकी देवी, अपने बेटे को गोद में लेकर मोहम्मद गौरी से युद्ध किया।जिसकी वीरता के किस्से इतिहास के पन्नों से गायब है। शत  शत नमन है ऐसी वीर योद्धाओं को।जिसने अपने प्राण तक दांव पर लगा दिए। अपने देश को बचाने के लिए। 

(FAQs):

  • रानी नायकी देवी कौन थीं?

    • रानी नायकी देवी सोलंकी/चालुक्य वंश की शासक थीं, जिन्होंने गुजरात के राजा अजयपाल सोलंकी के निधन के बाद शासन संभाला था.

  • रानी नायकी देवी ने मोहम्मद गौरी को कब और कहाँ हराया?

    • 1178 ई. में गड़रघट्टा (माउंट आबू के पास, सिरोही, राजस्थान) में मोहम्मद गौरी को युद्ध में हराया.

  • रानी नायकी देवी की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी?

    • उन्होंने सीमित संसाधनों और सेना के बावजूद साहस, रणनीति और कूटनीति से मुहम्मद गौरी को हराया — जो बड़े-बड़े योद्धा नहीं कर पाए थे.

  • क्या इतिहास में रानी नायकी देवी की वीरता को उचित पहचान मिली?

    • नहीं, उनकी वीरता और उपलब्धि को अत्यंत कम दर्ज किया गया; वे इतिहास के पन्नों में लगभग गुम नाम रहीं.

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