राजस्थान स्कूल में जातिवाद: शिक्षक की पिटाई से दलित बच्चे की मौत और समाज की कड़ी सच्चाई
परिचय:-
क्या आपने कभी सोचा है कि पढ़ाई-लिखाई के बावजूद हमारे समाज में कितनी गहरी पिछड़ी सोच और जातिवाद के जख्म अभी भी मौजूद हैं? राजस्थान के जालोर जिले के एक छोटे से सरकारी स्कूल की वो कहानी, जो आज भी इंसानियत की परीक्षा ले रही है, जहां एक शिक्षक की जातिगत दमन की वजह से एक मासूम दलित बच्चे की जान चली गई। इस कहानी में स्कूल का माहौल फिर से अंधेरी पुरानी रीतियों में डूबा, जहां बच्चों को जाति के नाम पर विभाजित किया गया और न्याय का दरवाजा कबूल न हुआ। आइए जानते हैं उस दर्दनाक सच्चाई को, जो आज भी कई जगह छुपी हुई है।
ये कहानी हैं आज के समाज की पिछड़ी सोच की जो पढ़ लिख तो लिए है लेकिन रूढ़ीवादी सोच से अपने आपको आजाद नहीं करवा पाए।राजस्थान का एक छोटा सा गांव जालोर के सरकारी स्कूल की।कहानी है आज के समाज की पिछड़ी सोच और जातिवाद को लेकर सोच को बयान करता है राजस्थान जो राजशाही अंदाज के लिए पहचाना जाता है, उसी राजस्थान का एक छोटा सा गांव जालोर के एक सरकारी स्कूल में कुछ दिन पहले एक अध्यापक सुरेश आया जो जाति को लेकर बड़ा कट्टरहै।. उसकी जाति को लेकर जो बातें होती है,उससे वे लोग भी सुरेश के साथ शामिल हो जाते हैं जो जाति को बहुत मानते हैं, लेकिन कानून व्यवस्था के कारण चुप बैठे थे। जो अपनी सोच को दबा जाते हैं कि किसी ने उनके खिलाफ़ शिकायत कर दी तो उनकी नौकरी चली जाएगी। लेकिन सुरेश को किसी बात का डर नहीं होता क्योंकि उसका जो बैकग्राउंड काफी हाईफाई लोगों के साथ होता है। इसकी नजर में कानून का भी डर नहीं है। कुछ दिन बाद सुरेश ने स्कूल में नीची जाति के बच्चे और उंची जाति के बच्चों को अलग अलग कर दिया। उनके लिए खेलने, पानी, पीने को शौच आदि का स्थान सब अलग अलग कर लिया। उसकी देख देखी दो तीन टीचर ने भी सुरेश का समर्थन किया। स्कूल का माहौल आज से कई साल पहले का दिखने लगा,नीच जाति के बच्चे अछूत कर दिए जैसे उनके संपर्क आने से कोई बिमारी हो जाएगी। टीचर वहाँ पर ऊंची जाति केबच्चो को अच्छे से पढ़ाते लेकिन नीची जाति के बच्चों की काफी तक चेक नहीं की जाती थी।वे लोग उनकी कोई चीज़ को हाथ नहीं लगाते। उन बच्चों से स्कूल की सफाई और शौचालय साफ करवाया जाता जब बच्चों के माता पिता स्कूल में आते हैं। ये कहने की आप बच्चों से काम करवातें हो तो वे टीचर उनके ठीक से बात भी नहीं करते। वह कहते हैं, अगर बच्चों की इतनी ही चिंता है तो उसने कही और यह प्राइवेट स्कूल में पढ़वा लो।अगर उन्हें यहाँ पढ़ना है तो काम करना पड़ेगा।विचारे माँ बाप ही।आगे कुछ नहीं कह पाते।क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं जो वे उन्हें प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सकें। इसलिए बच्चों को भी परेशान होकर उसी स्कूल में पढ़ना। 1 दिन स्कूल में नीची जात के बच्चों का पानी खत्म हो जाता है। एक 6 साल का बच्चा प्यास से परेशान था। उसने उसने स्टाफ रूम में रखे सुरेश के मटके से में पानी पीना, चाह बच्चों ने उसे रोक दिया। फिर उसने स्टाफ रूम की तरफ देखा। वहाँ कोई नहीं था। उसने सोचा यह कोई नहीं है और मुझे कोई देख भी नहीं रहा। उसने उस मटके में पानी पी दिया। उसी समय सुरेश वहाँ आ गया। उसने उस बच्चे को पानी पीते देखा। पहले तो उसने कुछ नहीं कहा। फिर उसे पता चला कि वह छोटी जात का बच्चा है।तो वह उसे पीटने लगा। वह उसे थप्पड़ लात मारता रहा। सुरेश एकदम पागल हो जाता है, वो उस बच्चे को है तो गंदगी का कीड़ा हमारा पानी पीएगा उस बच्चे को बहुत बुरे तरीके से मारता हैं।उसे कई जगह चोट के निशान भी हो जाते हैं लेकिन वो बच्चे को तब तक मारता है जब तक कि उसका रोना बंद नहीं हो जाता है वो उस बच्चे को मार कर चला जाता है। बच्चा वहीं पड़ा रहता है, वो हिलता भी नहीं है। जब स्कूल के दूसरे बच्चे उसे उठाने की कोशिश करते हैं तो वो नहीं उठता है। फिर कुछ बच्चे मिलकर उसे उसके घर ले जाते हैं। उस बच्चे के माँ बाप जब बच्चे को दूसरे बच्चों के हाथ उठाया देखते हैं तोउसकी तरफ भाग कर जाते हैं और अपने बच्चे को गोद में ले लेते हैं। वे उसे आवाज लगाते हैं। वीरू उठ उठ बेटा मगर वीरू नहीं उठता है। वे उसे डॉक्टर के पास लेकर जाते हैं। डॉक्टर उसे मरा हुआ घोषित कर देता है। जब उसके माँ बाप सोचते हैं क्या हुआ तो बच्चे कहते हैं जो नया टीचर आया है उसने बहुत मारा है क्योंकिइसने उनके मटके में से पानी पी लिया था। वीरु के माँ बाप बच्चे के स्कूल जाते हैं टीचर से बात करने के लिए की उन्होंने बच्चे को क्यों मारा और मारा भी तो इतना मारा कि उसकी जान ही चली जाए। छोटी जात के बहुत से लोग इकट्ठे होकर उनके साथ स्कूल जाते हैं, लेकिन टीचर भीड़ को देखकर पहले पुलिस को बुला लेता है, फिर उन लोगों से मिलता है वो पुलिस वाले भी टीचर की जांच करते है। वो भीड़ को शांत करने के लिए एक बार तो सुरेश को स्कूल में थाने ले जाने की बात करता है। सब लोग शांत हो जाते हैं, अब उसे सजा मिल जाएगी।मगर पुलिस वाला उसे थाने ले जाने से पहले ही छोड़ देता है। जब लोगों को इस बात का पता चलता है तो वे लोग वापस पुलिस स्टेशन जाकर शिकायत करते हैं कि आपने उस टीचर को जेल में क्यों नहीं डाला? इसी वजह से एक बच्चे की मौत हुई या पुलिस वाला उन लोगों को डराता है। तुम क्यों कानून के चक्कर में पड़ रहे हो?जिसे जाना था वो तो गया तुम अपना काम धंधा छोड़कर क्यों बैठे हो? अपना घर संभालो अपने परिवार पर ध्यान दो, देखो तुम मेरी बात मानो यह कानून न्याय।ये सब टीवी में होता है हकीकत में नहीं वो एक बड़ा आदमी है उसकी पहुँच ऊपर तक है तुम चाहकर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।और स्कूल में बहुत से बच्चों ने उसे वीरू को मारते हुए देखा है। पुलिस कहती है कौनसे बच्चे तुम्हारी ही बिरादरी के बच्चे उनकी गवाही नहीं चलेगी? क्या पता है तुम लोगों ने किसी बात की खुंदस निकाली हो सुरेश से और तुम सब मिलकर उस में फंसना चाहते हो। अगर कोई बच्चा हमारी जात का हो और अगर वह गवाही दे तो मैं सुरेश को जेल में डाल दूंगा। अब उन लोगों के समझ आ गया कि हम कुछ नहीं कर सकते क्योंकि वे लोग कभी भी उनके पक्ष से गंवायी नहीं देंगे। वे लोग मायूस होकर वहाँ से आ जाते हैं।पुलिस को तो पता है जो कर रहा है वो सुरेश को बचाने के लिए कर रहा है। जो गलत है उसे डर है। कहीं यह बात ऊपर तक पहुँच गई तो उसकी नौकरी भी जा सकती है। अब वो सुरेश और खुद को बचाने के लिए लग जाती है। दूसरी तरफ कुछ मीडिया वाले भी इस पर ब्रेकिंग न्यूज़ बनाने लगे हैं।जिसकारण उसे एफआइआर लिखनी पड़ती है, जिसमें वो बच्चे का आपसी झगड़े को मौत की वजह बताता है। फिर शुरू होती है सुरेश और पुलिस की चाल। वो सबसे पहले उन बच्चों के घरवालों के पास जाते हैं जो कह रहे थे की उन्हें सुरेश को देखा है।बच्चे को मारते हुए पुलिस वाले उन्हें डराते हैं। अगर उन्हें गवाही दी तो वह बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाएंगे। इसी स्कूल में नहीं बल्कि कहीं भी नहीं पढ़ पाओगे।तुम लोगों को कहीं काम नहीं मिलेगा, तुम लोगों को अपना पेट भरना भी भारी हो जाएगा। सुरेश के लेग उन लोगों का जीना हराम कर देते हैं। उनकी बिजली पानी बंद करवा देते हैं, जिससे वे लोग परेशान हो जाते हैं। सुरेश के आदमी अगले दिन आकर फिर उन्हें डराते हैं। अगर उन लोगों ने बात नहीं मानी तो उनका गांव में रहना भारी हो जाएगा।कोई तुम्हें काम नहीं देगा। वैसे भी वे लोग विरु के माँ बाप का साथ देकर बहुत परेशानी उठा रहे थे। वे ज्यादा परेशान नहीं होना चाहते थे इसलिए धीरे धीरे वे लोग उस बच्चों वीरों के माँ बाप से दूर होने लगते हैं। अब इंसाफ़ के लिए वीरू के माँ बाप ही रह जाते हैं। पुलिस उन पर भी दबाव बनाने लगती है की वे अपनीऔर एफआइआर वापस ले लें क्योंकि उन्हें पता है अगर एफआइआर वापस नहीं ली तो उन्हें कार्रवाई करनी होगी, जो वे चाहते हैं कि सुरेश को सजा मिले। अगर कार्रवाई नहीं की तो उनकी नौकरी जा सकती। इसलिए वे जल्द से एफआइआर वापस लेने के दबाव वीरु के माँ बाप पर बनाने के लिए उन्हें परेशान करना शुरू कर देते हैं।वे लोग अपने आदमियों किसी तरह रोज़ रोज़ वीरू के घर भेजते हैं, उन्हें परेशान करने के लिए उनके घर का सामान फेंकने लगते हैं, कभी उनके कपड़े जला देते हैं। जब इतना करने पर भी उनकी बात नहीं बनी तो 1 दिन वीरु के बाप को पीटने लगते है और उसकी माँ के साथ बदतमीजी करते हैं?उनसे कहते हैं, जाकर इसकी भी शिकायत करो। बड़े ऑफिस जाकर। रोज़ के अत्याचार से परेशान होकर भी वे लोग उनके सामने झुकने को तैयार नहीं थे। ऐसे लगता है जैसे वे इंसाफ़ के लिए ही जिंदा है। इंसाफ पाने के लिए उन्हें।समाचार पत्र का सहारा लिया है।जिसका कारण यह हादसा लोगों की नजर में आया और ऊपर तक पहुंचा। अब पुलिस पर दबाव बढ़ने लगा। इस केस को हल करने के लिए अब पुलिस न चाहते हुए भी कार्रवाई करनी पड़ती है। लेकिन सुरेश कहता है तुम मुझे 1 दिन का समय दो। या तो यह केस खत्म हो जाएगा या फिर मैं हवालात में सुरेश खुद को बचाने के लिए आखिरी बार वीरू ने माँ बाप से बात करने जाता है।उन्हें समझाता है कि वे अपनी शिकायत वापस ले ले, वो उन्हें उसके बदले पैसे दे देगा जब वे सुरेश की बात नहीं मानते है।फिर सुरेश अपना ज़ोर दिखाने लगता है। वो वीरू के बाप को उनकी माँ की साड़ी से दीवार पर बांध देता है और फिर भी उसकी माँ के मुँह को कपड़े से बंद कर देता है। वो दोनों झटपटाते हैं खुद को बचाने के लिए। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वहक्याचाहता है। उन्हें लगा कि अब वो उन दोनों को मारने वाला है या फिर उनके घर को आग लगाने वाला है और वे दोनों उसने ही जलकर मर जाएंगे। मगर सुरेश ऐसा कुछ नहीं करता है। उनके दिमाग में कुछ और चल रहा था। वह वीरु के पापा के सामने ही वीरु की माँ का बलात्कार करता है।और उन्हें कहता है अब जाओ शिकायत करने अब मैं सजा भुगतने के लिए तैयार हूँ, मैं अपना गुनाह भी स्वीकार करता हूँ उस बच्चे को मैं मारना नहीं चाहता था।उसने मेरे मटके से पानी पिया, जो मुझे मंजूर नहीं था, उसे ऐसा करता देख मुझे गुस्सा आ गया और मैं खुद पर कंट्रोल नहीं कर सका, जिसके कारण तुम्हारे बेटे की जान चली गई। मैंने तुम्हें कितनी बार समझाया था, लेकिन तुम्हें कुछ समझ में ही नहीं आया।अब ये गुनाह मैंने जानबूझकर कर दिया है। अब तुम कहाँ जाना चाहो जाओ जो करना है वो करो वीरु के माँ बाप अभी इस हादसे से उबर भी नहीं पा रहे थे कि अचानक उनका सब कुछ खत्म हो गया। अब वो अपना और अपमान नहीं करवाना चाहते थे इसलिए दोनों खुदकुशी कर लेते हैं। सुरेश खुद।पुलिस स्टेशन चला जाता है क्योंकि पुलिस की सुरेश को गिरफ्तारी इस हादसे से पहले ही हुई है। अब सुरेश पर बलात्कार का केस तो बनता नहीं है और उन दोनों के मरने के बाद तो वे एफआइआर वापस लेने के कागज पर उनका अंगूठा लगवा लेते हैं, जिसे सुरेश पूरी तरह से निर्दोष साबित हो जाता है।पावर के आगे कानून और सच्चाई हार जाती है।
Note:- This Story is Fictional.यह कहानी काल्पनिक है।
FAQs:-
क्या राजस्थान में अभी भी स्कूलों में जातिवाद होता है?
हाँ, कई सरकारी और निजी स्कूलों में जातिगत भेदभाव अब भी देखने को मिलता है।क्या ऐसे मामलों में न्याय मिलता है?
अक्सर सामाजिक दबाव और सत्ता के प्रभाव से न्याय नहीं मिल पाता या देरी होती है।शिक्षकों के खिलाफ ऐसे आरोपों की जांच कैसे होती है?
पुलिस जांच करती है, लेकिन कई बार साक्ष्य और गवाहों को दबाने की कोशिश की जाती है।दलित बच्चों की पढ़ाई में सुधार कैसे ला सकते हैं?
जागरूकता, सख्त कानून लागू करना और समाज में समानता की नींव मजबूत करने से।