बुढ़ापे का दर्द : रिश्तों की गहराई और जिम्मेदारी का सच

बुढ़ापे का दर्द : रिश्तों की गहराई और जिम्मेदारी का सच

परिचय:-

घर, एक ऐसी जगह होती है जहां हर व्यक्ति सुकून चाहता है। लेकिन जब वही घर अपनों के तानों और स्वार्थ से भर जाए, तो बुजुर्गों का दिल टूट जाता है। यह कहानी एक माँ-बाप की है, जिन्होंने अपने बच्चों के लिए सब कुछ कुर्बान किया, पर बदले में एक अपमान भरा वृद्धावस्था पाई। यह कहानी केवल एक अनुभव नहीं, एक सोचने की बात भी है—क्या हम वाकई अपने बुजुर्गों को वो सम्मान दे रहे हैं?

बुढ़ापे का दर्द : रिश्तों की गहराई और जिम्मेदारी का सच


आज मैं और मेरी पत्नी एक ऐसे मोड़ पर खड़े  हैं जहाँ से हमें।अपने घर जाने में भी डर लग रहा है क्योंकि जो घर कभी मेरा होता था, आज वो मेरे बेटे का बन गया है। आज हमारे बच्चों को हमारा घर में रहना खटखटाता है। हमारा बच्चों को कुछ कहना उन्हें रोका टोकी लगती है। जिन बच्चों से हमें अपने घर मैं रौनक लगती थी, आज बड़े होकर उन बच्चों ने हमसे, हमारा स्वाभिमान और अपनापन ही छीन लिया है। अब हमें अपने ही घर में पराया  जैसा लगता है। जिन बच्चों की खुशियों और जरूरत के आगे हमने कभी अपने सपने और अपनी जरूरत के बारे में नहीं सोचा, उन्हें वह हर चीज़ उपलब्ध करवाई जो कभी हमारे वश से बाहर थी।कभी अपने करियर बनाने के लिए समय ना निकाल पाएं क्योंकि बच्चों की जरूरत पूरी करने में ही सारा समय और मेहनत लग जाती।मेरी पत्नी ने तो बच्चों की परवरिश और देखभाल के आगे अपना करियर बनाने के बारे में भी नहीं सोचा। उसे लगता है अगर वो बाहर जाएँगी तो बच्चों की देखभाल में लापरवाही होगी, जो उसे बिल्कुल मंजूर नहीं था। उसने अपनी खुशियों और सपने अपने बच्चों के सपने पूरे करने में कुर्बान कर दिया।आज मुझे बहुत दुख हुआ जब मेरे बेटे ने अपनी माँ से कहा माँ आप और क्या चाहती हो? आपको यहाँ बैठे बैठे फ्री में सारी चीजें मिल रही है। आप और पापा पूरा दिन खाली बैठे रहते हो, क्योंकि खाने को तो मिल ही जाएंगे और कुछ करने की क्या जरूरत है? बस सारे दिन बच्चों को डांटना। माँ आप बच्चों को क्यों डांटती रहती है? अगर आप यहाँ चुपचाप नहीं रह सकती तो कहीं और चली जाइए, वैसे भी आप एक बोझ बन गई हो। आप से खुद से तो कुछ होता नहीं है। डंग से उठा बैठा भी नहीं जाता। ये सुनकर मेरी पत्नी की आँखों से आंसू बहने लगते हैं और मैं अपनी पत्नी के आंसू पोछने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। आज जो अपमान मेरी पत्नी का हुआ है उसका जिम्मेदार।कहीं न कहीं मैं ही हूँ। शायद कुछ फैसले मैंने गलत लिए, जिसकी सजा हम आज भुगत रहे हैं। इसलिए तो मैं अपनी पत्नी के सम्मान के लिए कुछ कर नहीं सकता क्योंकि अब मेरे अंदर भी इतनी ताकत नहीं है। मैं घर किराये पर लेकर अपना गुज़ारा कर सकूँ। मेरा मन तो ऐसा कर रहा है कि अभी यह घर छोड़कर चला जाऊं। पर हम बेबस थे और खून का घूँट पीकर रह जाते हैं। जब मेरे भाई को हमारी दुर्दशा का पता लगा तो उसे बहुत दुख हुआ क्योंकि उसने मुझे मना किया था कि मैं अपना घर अपने बेटे के नाम करूँ क्योंकि बाद में वे लोग तुम्हें पूछेंगे भी नहीं, लेकिन मुझे तो अपने बेटे पर कुछ जरूरत से ज्यादा ही भरोसा था जो घर हमारे मरने के बाद उनका होगा।पहले हो जाए तो क्या मैं सोचता था चाहे कुछ भी हो जाये, हमारे बच्चे हमें प्यार करना नहीं छोड़ेंगे, लेकिन मैं गलत था और मेरा फैसला भी। क्योंकि मेरे भाई का मकान आज भी उसके नाम है।, बच्चे उनकी अच्छे से सेवा करते हैं और बच्चे उनकी बातें भी सुनते है क्योंकि सभी बच्चों के मन में लालच हैं वे सोचते हैं कहीं माँ बाप अपनी प्रॉपर्टी दूसरे भाई के नाम न कर दे, इसी डर से सारे भाई अपने माँ बाप की सेवा करते हैं।आज बच्चों को पैसे और प्रॉपर्टी से मतलब है माँ बाप से नहीं उन्हें अपने माँ बाप के प्रति अपनी जिम्मेदारी और फर्ज का एहसास नहीं है। वे लोग हर समय बस माँ बाप से लेना चाहते हैं और बदले में उन्हें प्यार और आदर भी नहीं देते हैं। इसलिए आज हम अपने बेटे की बात से दुखी होकर आश्रम आ गए जहाँ पर हमारी मुलाकात मेरे भाई से हुई थी। आज हम अपने घर जाने में डर लग रहा है, जिस घर में कभी हम अपनी सारी थकान भूल कर खुश रहते थे।उसमें जाने से डर लग रहा है। जिसमें हमने अपनी बचाई हुई एक एक पाई लगा दी। जिसे हमने बड़े प्यार से सजाया था, आज वो घर बेगाना लग रहा है। आज पूरे दिन आश्रम में रहने के बाद हम लोग शाम को अपने घर जा रहे हैं, वह भी बस सोने।हम जाना तो चाहते हैं। लेकिन हमारे कदम हमारा साथ नहीं दे रहे हैं घर जाने के लिए। किसी समय कदम अपने आप घर की तरफ़ बढ़ जाते थे और आज तो ऐसा लग रहा है जैसे घर जा ही नहीं सकते, मगर हम कहीं और  भी नहीं जा  सकते। आखिर मैं हम रात होने से पहले घर पहुँच जाते हैं, घर पर आते ही बहू के ताने शुरू हो जाते हैं।सुबह बेटा रात को बहू मेरी पत्नी को सुनाना शुरू कर देती है। मैं थोड़ी देर बाद रूम में आया। वे लोग मेरी पत्नी पर तानो की बारिश शुरू कर देती हैं। ऐसे बहुत सी बातें हैं जो मुझे तो पता भी नहीं।मेरी पत्नी अपनी अंदर बच्चों की क्या क्या बातें छुपा कर बैठी है। तानों और बच्चों की खटपट से तंग आकर हमने फैसला किया कि हम लोग वृद्धा आश्रम चले जाएंगे। फिर सोचा ऐसा किया तो समाज में बच्चों की बदनामी होगी।आज भी एक माँ अपना अपमान होने के बाद भी अपने बच्चों के सम्मान के बारे में सोच रही है।क्या माँ बाप की कोई जिंदगी नहीं माँ बाप अपने बच्चों की परवरिश में ज़रा सी भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं करते है। बच्चे बड़े होने पर यह भूल जाते हैं की उन्हें भी एक उम्र में आकर आदर और देखभाल की जरूरत होगी। आज बच्चे जिस हक से घर पर बैठे। वह घर उनकी कमाई का नहीं बल्कि माँ बाप की कमाई का है, जिसमें अब उन्हें आदर से रहने का हक तक नहीं है। अगर बच्चे माँ बाप को कुछ दे ना सके तो उनसे ले भी ना। कम से कम वो अपने घर में आदर के साथ तो रह सके। मैं और मेरी पत्नी यही सोच रहे थे कि अब क्या करे? ऐसे तो उनका रहना भारी हो जाएगा। क्या हमें कोर्ट चले जाना चाहिए या फिर वृद्धाश्रम हमारे लिए  फैसला लेना मुश्किल हो रहा है। जब माँ बाप जिंदा है तो बच्चों को उनकी परवाह नहीं है, बोझ लगते हैं और मरने के बाद उनका भोग के लिए कई प्रकार के व्यंजन बनाएंगे। उनका श्राद्ध निकालेंगे। उनकी याद में  धर्मशाला बनवाएंगे।अगर यही परवाह माँ बाप के आगे की जाए तो किसी भी माँ बाप के लिए बुढ़ापा भारी नहीं होगा। या फिर एक ऐसा बेटा हो जिसे माँ बाप के पसों या प्रॉपर्टी की परवाह ना होकर माँ बाप के प्यार की परवाह हो। ऐसे बेटे बहुत कम और किस्मत वाले मिलते हैं। जिन्हें मिलते हैं उन्हें अपने बेटे की परवाह कम नजर आती है और जिम्मेदारी ज़्यादा समझते हैं। कई जगह तो माँ बाप और बच्चों के बीच का रिश्ता चरमरा जाता है। गलती? कहा या किसी की है या फिर हालत ऐसे होते है कुछ समझ नहीं आता, लेकिन चाहे कुछ भी हो मानवीय मूल्यों को ध्यान रखना चाहिए और अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिये। 

FAQs:

  1. क्या यह कहानी वास्तविक अनुभव पर आधारित है?
    हाँ, यह कहानी हमारे समाज में घट रही सच्चाई से प्रेरित है।

  2. कहानी का मुख्य उद्देश्य क्या है?
    सामाजिक जिम्मेदारी, मानवीय मूल्य, और बुजुर्गों के प्रति आदर बढ़ाना।

  3. इसका समाधान कैसे पाया जा सकता है?
    पारिवारिक संवाद, साझा जिम्मेदारी, और माता-पिता का सम्मान।

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