भगवान परशुराम का अद्भुत जीवन और उनकी अनकही कथाएँ
परिचय:-
भगवान परशुराम – एक ऐसा नाम जो साहस, त्याग और अप्रतिम शक्ति का प्रतीक माना जाता है। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार थे, जिनकी पौराणिक कथाएँ न केवल रोमांचकारी हैं, बल्कि धर्म, अधर्म और न्याय के संघर्ष को जीवंत करती हैं। उनका जीवन प्रेरणादायक है और उनकी कथाएँ हमें अंधकार में एक नई रोशनी दिखाती हैं। यह कहानी आपको भगवान परशुराम के अद्भुत व्यक्तित्व और उनकी महाबली गाथाओं को जानने के लिए लेकर चलेगी।
भगवानपरशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं। महापुराण के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म भार्गव वंश में हुआ था। जन्म से उनका नाम राम था।भगवान परशुराम नाम उनको बाद में मिला। वे भगवान विष्णु के अन्य अवतार से अलग अवतार माने जाते हैं। महापुराण के अनुसार वे जन्म से विष्णु भगवान का अवतार नहीं थे। उन्होंने अपने अंदर भगवान विष्णु के अंत जागृत किये तब वह भगवान विष्णु के अवतार बने थे।वे उगर और क्रोधित स्वभाव से जाने जाते हैं। वे धरती पर बुराई का नाश करने के लिए अवतरित हुए हैं। वे मह ऋषि जमदगनी और देवी रेणुका के पुत्र थे। उन्हें राम के नाम से भी जाना जाता था। भगवान परशुराम ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी। उन्होंने भगवान शिव से युद्ध कलाऔर अस्त्र प्राप्त किए। जैसे पिनाक धनुष, विजय धनुष और फलसा ( परशु) आदि। भगवान परशुराम को महादेव ने दिए।उन्हें फलसा ( परशु) बहुत प्रिय है इसलिए वे परशु को सदैव अपने साथ रखते थे। परशु के कारण इनका नाम परशुराम पड़ा। वे अस्त्र शस्त्र के ज्ञाता थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार परशुराम ने अपनी माता का सिर काट दिया था क्योंकि एक बार वो स्नान करके आश्रम लौट रही थी तो उन्होंने गंधर्वराज को जल विहार करते देखा जिससे उनके मन में विकार उत्पन्न हो गया। जब यह बात उनके पति जमदग्नि को पता चला तो क्रोध में आकर उन्होंने अपने सभी पुत्रों से बारी बारी अपनी माँ का वध करने के लिए कहा, लेकिन किसी ने ये ऐसा नहीं किया वे उन्होंने अपने पुत्र को विचार शक्ति नष्ट होने का श्राप दिया।।जब उनका पुत्तर परशुराम वहाँ आए तो उन्होंने उनसे भी यही कार्य करने को कहा। परशुराम पिता की आज्ञा मानते उन्होंने अपनी माँ का वध कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि की बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम से भर मांगने को कहा। तब उन्होंने अपनी माँ का जीवन और भाइयों के लिए क्षमा दान मांगा। महर्षि जमदग्निअपने तपों बल से सब कुछ ठीक कर दिया।उनकी माता और भाई पहले वाली स्थिति में आ जाते।दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम के पिता की हत्या हैहय ने कर दी थी। सोराम ने शपथ ली थी कि वे हैहयबंसी नहीं बल्कि समस्त धरती को क्षत्रिय विहीन कर देंगे। 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन कर देते हैं। वे सभी क्षेत्रीय का संहार कर देते हैं। क्षत्रिय जितनी बातें होती पर अपना प्रभाव बढ़ाते हैं वो उतनी बार उनका संहार कर देते हैं। अंत में महर्षि ऋचिक के कहने के बाद परशुराम ने रक्तपात बंद किया और बाद में यज्ञ भी किया।भी किया और जीती हुई जमीन महर्षि कश्यप को दान दे दी, भगवान परशुराम ने देवताओ को असुरों से से विजय दिलाने के लिए युद्ध भी किया।और भगवान परशुराम तपस्या करने महेंद्रचल पर्वत पर चले गए। जब भगवान राम सीता स्वयंवर में शिव धनुष को तोड़ते हैं। तो भगवान परशुराम क्रोधित होजाते है।भगवान परशुराम जनक नगरी आ जाते हैं।उनके पास मन की गति से भी तेज आवागमन करने की शक्ति थी। राम लक्ष्मण और परशुराम के बीच संवाद गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शिव धनुष को टूटे हुए देखकर वह क्रोधित हो जाते है और जिन्होंने यह काम किया उन्हें वे चुनौती देते हैं। यह सुनकर रस्म जो अपने वाक्यपट्टु और निर्भिक स्वभाव के लिए जाने दान देते है, परशुराम के क्रोध व्यंगय करते है दोनों के बीच में तीखी वार्तालाप शुरू होती है। दोनों एक दूसरे के क्रोधित होते रहते हैं।लक्ष्मण परशुराम के क्रोध को अनुचित ठहराते हैं।लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं ये श्रेष्ठ मुनि आप अपने आपको महान योद्धा समझ रहे हैं इसलिए आप अपना फरसा बार बार दिखा रहे हैं। ऐसा लगता है कि आप फूंक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हैं, मैं छोटा फल न नहीं हूँ।जो तर्जनी देखते ही मर जाऊंगा। परशुराम भी लक्ष्मण को चेतावनी देते है कि वो उनका का सिर काट देंगे राम शांत स्वभाव से परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास करते हुए परशुराम को नाथ कहकर संबोधित करते और स्वयं को उनका सेवक बताते ताकि परशुराम का क्रोध शांत हो जाए। जब राम और परशुराम के बीच संवाद होता है तो पर परशुराम कहते मैं कैसे मान लू की तुमने ही शिव धनुष तोड़ा है अगर सच में तुमने धनुष तोड़ा है तो सारंग धनुष से बान चलाओ। परशुराम को श्रीराम में नारायण नजर आते हैं।और उनका क्रोध शांत हो जाता है।वे नारायण से कहते हैं, आपने मेरा क्रोध शांत कर करने के लिए ही राम के रूप में अवतार लिया है। भगवान परशुराम सात चिरंजीवियों से एक है। सिर्फ परशुराम ने माँ बाद में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने भीष्म द्रोणाचार्य और करण को युद्ध और शस्त्र चलाने की कला सिखाई थी और भीष्म को मारने के लिए अम्बा के अनुरोध को पूरा करने के लिए भीष्म के खिलाफ़ युद्ध भी किया था। हालांकि वे ऐसा करने में असफल रहे। करण ने भगवान परशुराम से झूठ बोल के युद्ध कला से की थी। इससे वे क्रोधित हो जाते है। और कर्ण को श्राप देते हैं कि वह समय आने पर अपने सभी युद्ध कला भूल जाएंगे।जब करण कहता है अगर मैं सूत पुत्र होने के बारे में कहता तो क्या आप मुझे युद्ध कला सिखाते?और मैं युद्ध कला सीखना चाहता था।जब परशुराम को करण का वास्तविक सत्य पता लगता है की वो।साधारण सूत पुत्तर नहीं बल्कि सूर्य पुत्तर हैं। तो उन्हें दुख होता है।जब कारण उन्हें गुरु दक्षिणा लेनेआप के लिए कहते हैं तो परशुराम कहते हैं, मैं तुमसे क्या लू मैंने तुम्हे जो दिया था वह सब कुछ तो ले लिया। लेकिन मैं अपने श्राप को कम करने के लिए तुम्हें विजय धनुष देता हूँ। अर्जुन के धनुष भी शक्ति शाली है।जब तक यह धनुष तुम्हारे हाथ में रहेगा तब तक तुम्हे कोई नहीं पराजित कर पायेगा। इसलिए जब अर्जुन कर्ण का वध करता है तो करण निशस्त्र होता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग और कलयुग के संगीतकार में भी मौजूद थे और उन्होंने कई युगों में धर्म की रक्षा की।कलयुग के अंत में वे भगवान नारायण में समा जाएंगे।
FAQs in Hindi:
भगवान परशुराम कौन थे?
भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। वे अन्य अवतारों से भिन्न अपने उग्र स्वाभाव और धरती पर बुराई को समाप्त करने के लिए प्रसिद्ध थे।भगवान परशुराम ने परशु क्यों धारण किया?
भगवान शिव ने परशुराम को परशु (एक प्रकार का हथियार) दिया। इस कारण उनका नाम परशुराम पड़ा। यह उन्हें अत्यंत प्रिय था।भगवान परशुराम ने अपने पिता की हत्या का बदला कैसे लिया?
अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए उन्होंने 21 बार धरती को क्षत्रिय विहीन किया और अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।क्या भगवान परशुराम चिरंजीवी हैं?
हां, भगवान परशुराम सात चिरंजीवियों में से एक हैं और कलयुग के अंत तक जीवित रहेंगे।भगवान परशुराम का महाभारत में क्या योगदान था?
भगवान परशुराम ने भीष्म, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धाओं को शस्त्रविद्या सिखाई थी।