अभिमन्यु: महाभारत का अमर वीर और चक्रव्यूह का योद्धा
संक्षिप्त परिचय:
ये कहानी एक प्राचीन महाग्रंथ महाभारत के एक पात्र की है,जिसने अपनी शौर्य और वीरता से दुश्मन को धूल चाटने पर मजबूर कर दिया। वो वीर योद्धा और कोई नहीं बल्कि अर्जुन और सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु है। जिसने।ने कम उम्र में ही अपनी वीरता और कुशलता का परिचय रणभूमि में दिखाया था। जानते है एक वीर योद्धा की कुछ कहीं और अनकही कहानी।
अभिमन्यु जब अपनी माँ के गर्भ में था, अर्जुन सुभद्रा के पास एकांत समय बिताने के लिए आते है। वे सुभद्रा को युद्ध की कला के बारे में बताते हैं। यह युद्ध कला चक्रव्यूह था। अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह के बारे में बताने लगता है। बहुत ध्यान से सब बाते सुनती है क्योंकि जो माँ कार्य करती है या सुनती है वह गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी असर डालता है। जब अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह में प्रवेश करने का मार्ग बता रहे थे तो अभिमन्यु भी अपनी माँ के साथ यह सब सुन रहा था। अर्जुन चक्रव्यूह में आगे बढ़ने का रास्ता बताते।चक्रव्यूह से बाहर निकलने का मार्ग बताने लगते हैं तो सुभद्रा की तरफ देखते हैं तो वो उस समय नींद में लीन हो जाती है। सुभद्रा केवल चक्रव्यूह में प्रवेश मार्ग तक ही सुन पाती है। इसलिए अभिमन्यु भी चक्रव्यूह प्रवेश तक सुन पाये । अभिमन्यु का बचपन अपने मामा श्रीकृष्ण के यहाँ द्वारका में बीता।अभिमन्यु ने अपने मामा कृष्ण और बलराम से युद्ध कौशल की शिक्षा प्राप्त की थी। 16 वर्ष की उम्र में अभिमन्यु का विवाह विराटनगर की राजकुमारी उत्तरा से होता है। विराट नगर में ही पांडव अज्ञातवास बिताते हैं।
1 दिन विराट नगर पर सैन्य हमला होता है। एक विशाल सेना को अपने राज्य के बाहर खड़ा देखकर विराट नगर का राजा चिंतित हो जाता है। राजा को ऐसे चिंतित देखकर युधिष्ठिर कहते हैं महाराज आप इतने चिंतित क्यों है? क्या हुआ है (युधिष्ठिर उस समय महाराज की तरफ से जुआ खेलने वाले का काम करते थे।) महाराज युधिष्ठिर को कहते हैं शायद तुम्हें कोई राजा ढूंढना होगा। मेरे राज्य के बाहर युद्ध के लिए एक विशाल सेना खड़ी है जिसे जीत पाना मुझे असंभव लग रहा है। युधिष्ठिर महाराज को कहते हैं आप अपने पुत्री, नृत्य शिक्षक ब्रहन्नला। को कहकर देखो, शायद वो आपकी तरफ से युद्ध करें तो आपकी विजय अवश्य होंगी। महाराज कहते हैं, युद्ध वो नृत्यतिका व नपुंसक क्या कर लेगा? युधिष्ठिर महाराज एक बार आप उससे बात करके देखो यह सुनकर महाराज क्रोधित हो जाते है और महाराज कहते हैं, कंक, तुम अपनी मर्यादा भूल रहे हो, तुम यहाँ दूत जुआ खेलने वाले हो, मेरे सेनापति नहीं। ये सब भीम सुन लेता है, उनसे अपने भ्राता का अपमान बर्दाश्त नहीं होता है। भीम जो उस समय रसोइया वल्लभ बने हुए थे वे कहते हैं, महाराज आपको इस समय पता नहीं है आप किस का अपमान कर रहे हैं? कहीं आपको अपने शब्दों के पछतावा न हो।महाराज ये कहीं का राजा है क्या? भीम हाँ महाराज इंद्रप्रस्थ के राजा युधिष्ठिर है और मैं भीम और ब्रहन्नला अर्जुन है। अस्तबल की देखभाल करने वाला नुकुल ग्रांथिक है,तन्तिपाल, गायों की देखभाल करने वाला सहदेव और द्रौपदी सेरनथ्री नाम की दासी बनी हुई है।हम सब ने अपना अज्ञातवास का एक वर्ष बिताने के लिए आप के यहाँ शरण ली थी और हम आपके ऋणी है। युधिष्ठिर कहते हैं इसलिए मैं आपसे ब्रहन्नला से युद्ध करने की बात कर रहा था। महाराज यह सब सुनकर अपने किए के लिए क्षमा मांगते हैं। युधिष्ठिर कहते हैं, महाराज आपसे क्षमा मांग कर हमें लज्जित न करें, हम तो आपके ऋणी है।आपने हमें हमारे विकट समय में अपने राज्य में रहने की अनुमति दी।फिर क्या अर्जुन विराट नगर के राजकुमार को लेकर युद्ध करने चला जाता है? युद्ध शुरू होता है। अर्जुन के लिए ही पूरी सेना पर भारी पड़ते हैं। अंत अर्जुन युद्ध जीत जाता है।अर्जुन की विजय से खुश होकर विराट नरेश अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन से करने का प्रस्ताव रखते हैं जिससे अर्जुन मना करके कहते हैं, महाराज उत्तरा मेरी शिष्या है और मेरी पुत्री समान है। मैं उसके बारे में ऐसा कैसे सोच सकता हूँ? हाँ, अगर आपकी अनुमति हो तो आप अपनी पुत्री का विवाह मेरे पुत्र अभिमन्यु से कर सकते हैं। राजा उत्तरा का विवाह अभिमन्यु से करने के लिए सहमत हो जाते हैं।अर्जुन कहते हैं, एक बार आप उतरा से और पूछ ले मैं अभी समाचार भेजकर अभिमन्यु और उसके मामा।मेरे सखा श्रीकृष्ण को यहाँ आने का आग्रह करता हूँ। अर्जुन जल्द अभिमन्यु के विवाह का समाचार द्वारका भेज देते है। समाचार मिलने के बाद द्वारका में सब बड़े खुश होते हैं। अभिमन्यु और श्रीकृष्ण विराटनगर जाने की तैयारी शुरू कर देते हैं।श्री कृष्ण सुभद्रा को कहते हैं बहना तुमने अपने चलने की तैयारी नहीं की।
सुभद्रा:-भैया क्या? वहाँ मेरी आवश्यकता है।वहाँ पर द्रोपदी दीदी है। वो अभिमन्यु को मुझसे भी ज्यादा प्रेम करती है और फिर यहाँ भी तो कोई होना चाहिए आप सब का स्वागत करने के लिए।
श्री कृष्ण:- जैसी तुम्हारी इच्छा.
श्रीकृष्ण और अभिमन्यु जल्द ही विराटनगर पहुँच जाते हैं। पूरा महल उनके स्वागत में लग जाता है। वे लोग आपस में बातचीत करने लगते हैं, उसी दौरान अभिमन्यु और उत्तरा की भेंट करवा दी जाती है। उतरा भी अभिमन्यु से विवाह के लिए तैयार हो जाती हैं। श्रीकृष्ण अभिमन्यु से पूछते हैं भानजे तुम्हें उतरा कैसी लगी? अभिमन्यु कहते हैं मामा जी, अगर आप सबको पसंद है तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है जैसा ठीक लगे वैसा कीजिए।
श्री कृष्ण:- इसका मतलब है तुम्हें उतरा पसंद नहीं है मैं अभी जाकर महाराज और तुम्हारे पिताजी को इस विवाह के लिए मना कर देता हूँ।
अभिमन्यु:- मामा जी, मैंने कब कहा मुझे उत्तरा पसंद नहीं है।
ये सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराने लगते हैं। उसी समय द्रोपदी वहाँ आ जाती है।
द्रोपदी:-सखा। मेरे पुत्र को क्यों परेशान कर रहे हो? मेरा पुत्र कोमल हृदय का है। वे आपकी मुस्कराहट और नीती को नहीं समझ सकता।
श्री कृष्ण कहते है सखी तुम्हारा पुत्र अब इतना छोटा भी नहीं है जो इन सब बातों का अर्थ न समझ सकें। तुम्हारा पुत्र अब रणनीति और राजनीति में निपुण हो चूका हैं।
द्रौपदी:- किंतु यह सब तो वह दूसरों के लिए है। हमारे लिए तो अभी कोमल बालक ही है।
ऐसा सुनकर श्रीकृष्ण हंसने लगते हैं और कहते हैं तुम भी ना और वहाँ से चले जाते हैं।
जल्द ही उतरा और अभिमन्यु का विवाह संपन्न हो जाता है। वे द्वारिका चले जाते हैं। वहाँ पर बड़ी धूमधाम से उतरा अभिमन्यु और बाकी सब का स्वागत किया जाता है। सब लोग बहुत खुश होते हैं।उतरा और अभिमन्यु भी अपने विवाहित जीवन में बहुत खुश रहते हैं। 1 दिन उत्तरा अभिमन्यु से पूछती है क्या आप भी पिताश्री के सामान धनुधारी और वीर योद्धाहो? अभिमन्यु कहता है वे मेरे पिताजी है। मैं भला उन जैसा धनुर्धर और वीर कैसे हो सकता हूँ?हाँ, मैं तुम्हें एक वचन दे सकता हूँ कि तुम्हें हमेशा मेरी वीरता पर गर्व होगा। तुम हमारे बच्चों को मेरी वीरता युद्ध कौशल के बारे में बड़े गर्व से बता सकोगी। उतरा और अभिमन्यु दोनों अपने विवाहित जीवन को आगे बढ़ा रहे थे। और दूसरी तरफ हस्तिनापुर पांडवों को उनका राज्य देने से मना कर देते हैं। दोनों पक्ष के पूर्व पांडव के तर्क वितर्क चलता है। दुर्योधन कहता है अगर तुम्हें अपने राज्य चाहिए तो हम से युद्ध करके जीत लो।दुर्योधन के यह वचन सुनकर शब्द चिंतित हो जाते हैं, खासकर भीषम द्रोणाचार्य और विदुर,युद्ध की बात सुनकर चिंतित होते हैं क्योंकि अगर युद्ध हुआ तो दोनों तरह अपना ही परिवार होगा।इसलिए वे लोग युद्ध को टालने का हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन वे सफल नहीं होते। जब श्रीकृष्ण शांति दूत बनकर आते हैं तो दुर्योधन के पास अंतिम विकल्प होता है, युद्ध टालने का वो भी समाप्त कर देता है। दुर्योधन श्रीकृष्ण को बंधी बना लेते हैं और ये राजनीति के विरुद्ध होता है भीष्म और द्रोणाचार्य के कहने पर उन्हें श्रीकृष्ण को मुक्त करना पड़ता है। श्रीकृष्ण कहते हैं, तुम मुझे कारावास में डालना चाहते थे, जिसका जन्म ही कारावास में हुआ जो 1 दिन भी कारावास में नहीं रहा। भीष्म दुर्योधन की तरफ से क्षमा मांगते हैं, दुर्योधन भी क्षमा मांगते है।और कहते हैं, वासुदेव आपको पांडवों की चिंता करने की क्या जरूरत है? अगर आप उनकी तरफ से युद्ध करेंगे तो फैसला सबको पता है। विजयी पांडव होंगे। श्रीकृष्ण कहते हैं दुर्योधन तुम चिंतित ना हो, मैं युद्ध में अस्त्र नहीं उठाऊंगा। दुर्योधन फिर पूछते हैं और आपकी नारायण सेना श्रीकृष्ण कहते हैं वो तो युद्ध में भाग लेंगी, दुर्योधन फिर पूछते हैं और आपकी नारायणी सेनावो किस पक्ष से युद्ध करेगी? श्रीकृष्ण कहते हैं। इसका निर्णय कल सुबह होगा। अर्जुन और तुम सुबह दोनों मेरे पास आओ गे जिसपर पहले मेरी नजर पढ़ेंगी वो अपनी इच्छा से मुझे या मेरी नारायणी सेना ले सकता है लेकिन इस युद्ध में मैं हथियार नहीं उठाऊंगा।फिर क्या था दुर्योधन और अर्जुन श्रीकृष्ण के पास पहुँच जाते हैं। दुर्योधन अर्जुन से बहुत समय पहले आ जाता है।प्रति जब श्रीकृष्ण की आंख खुलती है तो उनकी पहली अर्जुन भी पड़ती है।श्रीकृष्ण अर्जुन को इच्छा इच्छा से नारायणी सेना और स्वयं में चुनाव करने को कहते हैं।यह सुनकर दुर्योधन नाराज हो जाता है और श्रीकृष्ण से कहता है मैं अर्जुन से बहुत समय पहले आया हूँ।तो चुनाव का अधिकार मेरा होना चाहिए।अर्जुन कहते हैं, माधव आप भ्राता दुर्योधन को चुनाव करने दें। दुर्योधन बिना समय गंवाए नारायणी सेना मांगी.श्री कृष्ण हस्तिनापुर से वापस आ जाते हैं और युद्ध की तैयारी में लग जाते है। अभिमन्यु अर्जुन से कहते हैं पिता जी आप मुझे चक्रव्यूह के बारे में बताइयें इसे कैसे पार किया जा सकता है? अर्जुन कहता है पुत्र अब भी समय नहीं है और तुम्हें इतना मुश्किल व्यूह के बारे में क्यों जानना है हमारे होते हुए हम तुम्हें कभी किसी व्यूह में अकेले नहीं जाने देंगे। श्रीकृष्ण दूर खड़े ये सुनकर मुस्करा देते हैं और फिर वहाँ आते हैं और अर्जुन से कहते हैं, लगता है तुम बहुत व्यस्त लग रहे हो।
अर्जुन:- हाँ माधव
अभिमन्यु फिर श्रीकृष्ण से कहते है, चक्रव्यूह के बारे में बताने के लिए तो श्रीकृष्ण कहते हैं, पुत्र अपने पिता से क्यों नहीं सीख लेते? और ये कहकर वहाँ से चले जाते हैं? अभिमन्यु कभी चक्रव्यूह से कैसे बाहर निकलते हैं? नहीं सीख पाता और युद्ध का इस समयनज़दीक आ जाता है।सभी अपने युद्ध की तैयारी में लगे रहते हैं। और वो दिन भी आ गया जब युद्ध के लिये दोनों सेना आमने सामने खड़ी होती है। जब अर्जुन अपने सामने अपने ही बंधु व संबंधों को देखता है तो युद्ध करने से मना कर देता है। तब अर्जुन को समझाने के लिए श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश दिया।और अपना कर्म करने को कहा और फिर सभी के शंखनाद से युद्ध आरंभ होता है।
इस युद्ध में लगभग सभी राजाओं ने अपना अपना योगदान दिया था। इस युद्ध में एक विशाल नरायण सेना थी। 18 अक्षुणी सेना जिसमें 21,870 रथ, 21,008 हाथी और घुड़सवार 1,00,950 पैदल सैनिक होते थे।बहुत से राजाओं की विशाल और साधारण सेना भी थी लगभग इस युद्ध में 11,41,60,374 महारथी और सैनिक शामिल थे। यह युद्ध अब तक का सबसे बड़ा युद्ध है,
जिससे एक साथ इतनी बड़ी संख्या में।योद्धा शामिल हुए थे श्रीकृष्ण के द्वारा अर्जुन को गीता का ज्ञान देने के पश्चात् युद्ध आरंभ होता है। पहले ही दिन युद्ध में बहुत जन हानि होती है। बहुत सी लाशें पड़ी होती है। सूर्यास्त के पश्चात शंखनाद से युद्धविराम होता है। युद्ध के कुछ नियम होते हैं, जिनका पालन दोनों पक्ष करते हैं। दिन प्रतिदिन युवक आगे बढ़ता है। दोनों पक्ष की सेना और महारथी कम होते जाते हैं।दुर्योधन युद्ध में अपनी ऐसी स्थिति देखकर क्रोधित होता है क्योंकि उनके पास पांडवों के मुकाबले ज्यादा सेना और महाआरती होते है। उसके पास 11 अक्षौहिणी सेना और एक विशाल नारायणी सेना होती है। पांडवों के पास सिर्फ सात अक्षुणी सेना और।मित्र और संबंधी की सेना जैसे जैसे युद्ध अपने चरम पर बढ़ाता है।दुर्योधन का सत्ता पाने का लालच भी।वह पूरे कुटुम्ब को मौत किनारे पर खड़ा कर देता है।
युद्ध में दोनों पक्ष के महारथी मारे जाते हैं। दुर्योधन अब जल्द ही युद्ध खत्म करना चाहते हैं। युद्ध को अब 12 दिन हो गए। दोनों पक्षों में बड़े महारथी इस युद्ध भेट चढ़ जाते हैं। लेकिन अभी भी इस युद्ध कोई निर्णय होता नजर नहीं आ रहा था क्योंकि अभी दोनों पक्षों के पास एक विशाल सेना थी।दुर्योधन इस युद्ध को खत्म करने के लिए योजना बनाने के लिए अपनी सभी नजदीकी और भरोसेमंद योद्धा भीष्म,द्रोणाचार्य कर्ण अश्वस्थामा के साथ मिलकर योजना पर विचार विमर्श करते हैं। दुर्योधन उन सब से कहते हैं, इस युद्ध में हम अपने बहुत सैनिक और महारथी खो चूके हैं। अब हमें इस युद्ध का अंत करना चाहिए। भीष्म, द्रोणाचार्य कहते हैं, क्या आप संधि करना चाहते हैं दुर्योधन?नहीं, मैं संधि के पक्ष में नहीं हूँ, मैं चाहता हूँ हमें युधिष्ठिर को बँधी बना लेना चाहिए क्योंकि राजा के बँधी बनते ही युद्ध खत्म हो जाएगा।भीष्मपिता महा आप चिंतित ना हो, मैं उसकी हत्या के लिए नहीं कह रहा हूँ। आप बस बँधी बनाने की योजना बनाइए पता नहीं और कितने महारथी मारे जाएंगे। दुर्योधन की बात सुनकर भीष्म और द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को बंदी बनाने की बात पर सहमत हो जाते हैं। द्रोणाचार्य कहते हैं हमें युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए चक्रव्यूह की रचना करनी होगी और अर्जुन को युधिष्ठिर से दूर रखना होगा।क्योंकि अर्जुन और श्रीकृष्ण चक्रव्यूह को विफल कर देंगे।और हमे ये चक्रव्यूह की बात इस शिविर से बाहर नहीं जाने देनी होगी।उसके लिए हमें एक योजना बनानी होगी। हम एक आत्मघाती सेना तैयार करेंगे जो अर्जुन को मारकर युधिष्ठिर को बँधी बनाएंगी और यही बात उनके शिविर तक जानी चाहिए क्योंकि जैसे ही अर्जुन को इस आत्मघाती सेना का पता लगेगा वो इस सेना को युधिष्ठिर के समीप भी नहीं आने देगा।जैसे ही हमारी सेना अर्जुन को युधिष्ठिर से दूर ले जाने में सफल होंगे, उसी समय हम चक्रव्यूह की रचना कर युधिष्ठिर।को बंधी बना लेंगे क्योंकि वहाँ पर अर्जुन के अलावा किसी को चक्रव्यूह में प्रवेश करना नहीं आता है।
श्रीकृष्ण यह सुनकर मंदमंद मुस्कुराते हैं, वे ठहरे त्रिलोकी जो सब जानते हैं।
कुछ समय में यह योजना अर्जुन तक भी पहुँच गई। अर्जुन और श्रीकृष्ण इस योजना पर विचार विमर्श करते हैं। कुछ समय पश्चात युधिष्ठिर, भीम, नकुल, सहदेव और अभिमन्यु भी वहाँ आ जाते हैं। अर्जुन और युधिष्ठिर कृष्ण से कहते हैं, वासुदेव अब हमें क्या योजना तैयार करनी चाहिए. श्रीकृष्ण कहते हैं, हमें क्या योजना बनाने की जरूरत है? योजना उन्होंने बना रखी है। हमें तो सिर्फ उनकी योजना विफल करनी है और मुझे पार्थ पर पूरा भरोसा है। वो आत्मघाती सेना को भ्राता युधिष्ठिर तक नहीं पहुँचने देगा। हमें तो उसे जितना दूर हो सके उतना दूर लेकर जाना है।अर्जुन कहता है वासुदेव सही कह रहे हैं, उसी समय अभिमन्यु कहता है पिताजी क्या कल प्रातः मैं युद्ध भूमि में जा सकता हूँ, शायद मेरी वहाँ आवश्यकता पड़ जाये। आप तो उस आत्मघाती सेना से युद्ध करोगे तो जेष्ट पिताश्री के पास काका के साथ मैं भी वहाँ पर उपस्थित रहना चाहता हूँ। युधिष्ठिर और अर्जुन कहते हैं, नयी पुत्र अभी युद्ध करने के लिए तुम्हारा समय नहीं आया, श्रीकृष्ण कहते क्यों नहीं आया है? अभिमन्यु एक वीर और कुशल योद्धा है। कल पार्थ तो इस आत्मघाती सेना के साथ युद्ध में व्यस्त रहेगा तो कोई तो धनुर्धारी होना चाहिए जिसकी वीरता पर सबको भरोसा हो। अभिमन्यु तो ऐसे योद्धा है जो एक साथ कई हज़ारों से युद्ध कर सकता है इसलिए कल अभिमन्यु को युद्ध भूमि में जाना चाहिए। मुझे तो अपने भांजे की युद्धनीति और वीरता पर पूरा भरोसा है। आगे आप सब लोग निर्णय लें।अभिमन्यु को रणभूमि में जाना चाहिए या नहीं? सभी के विचार विमर्श के बाद कल अभिमन्यु का युद्धभूमि में जाना तय हो जाता है। श्रीकृष्ण कहते हैं, भांजे हो सकता है कल तुम्हें निर्णायक लड़ाई लड़नी पड़े। ये रणभूमि है, यहाँ किसी पर दया नहीं दिखाई जाती। इसलिए कल प्रातः काल स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार रखना अभिमन्यु कहता हैं। मामा जी, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझे नहीं पता कल युद्ध का निर्णय क्या होगा मुझे नहीं पता है, लेकिन अगर युद्ध करने का अवसर मिला तो आप मेरी युद्ध कौशल और वीरता पर गर्व करेंगे, चाहे युद्ध की रणभूमि से मैं जीवित आऊं या पार्थिव देह,आपको अपने इस शिष्य की वीरता पर सदैव गर्व रहेगा। श्रीकृष्ण कहते हैं, अब तुम युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार हो, अब तुम कल क्या होगा इसके बारे में सोचना बंद करो। जिस समय में तुम हो उसे अच्छे से व्यतीत करें क्योंकि कल तुम्हारे जीवन का एक नया अध्याय शुरू होने वाला है। अभिमन्यु अपने शिविर में चला जाता है।
अभिमन्यु और उसकी पत्नी उत्तरा से बातचीत होती है। :
अभिमन्यु जैसे ही अपने शिविर में प्रवेश करता है उसे उसे अपना कक्ष आम दिन से कुछ अलग नजर आ रहा था। उतरा अपने शिविर को पहले से ज्यादा शांत कर लेती हैं। ये अपनी सभी दासियों को वहाँ से भेज देती हैं और अपनी शिविर को सुगंधित भी बना देती है। जब अभिमन्यु अंदर आता है तो वो उतरा से पूछता है, उतरा आज क्या बात है? आज हमारा शिविर में जरूरत से ज्यादा शांति लग रही है और अंदर का वातावरण महक रहा है। उत्तरा कहती हैं, हाँ, प्रिय, आज मैंने अपनी सभी दासियों को शिविर से भेज दिया है। मैं नहीं चाहती कि कोई हमारी बाते सुने। आज मैं अपने मन की बहुत सी बातें करना चाहती हूँ क्योंकि कल आप भी युद्ध के लिए रणभूमि में चले जाओगे।
अभिमन्यु कहता है, उतरा तुम्हारे मन में कोई डर की भावना नहीं है कि कल मैं युद्ध में जाऊंगा, शायद मैं कभी लौट पाऊ या नहीं। अभिमन्यु इतना ही कह पाता है उतरा अभिमन्यु के मुँह पर उँगली रख उसे चुप कर देती है उतरा कहती है, मुझे आपकी वीरता पर पूरा विश्वास है।आप पिताश्री की तरह धनुधारी हो और आप तो श्रीकृष्ण की शिष्य हो, फिर मुझे डर क्यों लगेगा? मैं भी क्षत्रिय की पत्नी हूँ और एक क्षत्रिय का तो पहला धर्म भी युद्ध करना होता है।फिर मैं कैसे आपके धर्म में बाधा बन सकती हूँ? और मैं तो अपनी सन्तान को आपकी वीरता के बारे में बताऊंगी, हम अपनी संतान को भी एक कुशल योद्धा बनाएंगे। अभिमन्यु कहता है, हाँ वो मुझसे भी अच्छा योद्धा बनेगा। हमारे पुत्र की ख्याति तो दूर दूर तक फैलेगी। उतरा आपको क्या पता हमारा पुत्र ही होगा। पुत्री ही नहीं अभिमन्यु मुझे तो ऐसी ही प्रतीत होता है। हमारा पुत्र होगा, अगर पुत्री भी हुई तो उसे भी हम युद्ध कौशल से निपुण करेंगे उतरा अभिमन्यु से बातें करते करते जल्द ही नींद में चली जाती है। सुबह शिविर में युद्ध पर जाने की तैयारी शुरू हो जाती है। अभिमन्यु भी अपने युद्ध की पोशाक पहनकर तैयार हो जाते हैं। अभिमन्यु शिविर से बाहर जाने से पहले उत्तरा को अपने हृदय से लगाकर कहता है, तुम अपना और हमारी संतान का ध्यान रखना।इसे कुछ हो ना पाए तुम मुझे वचन दो तुम अपना हमारी संतान का ध्यान रखने में कोई त्रुटि नहीं करेगी, चाहे हालात कैसे भी हो उतरा अभिमन्यु को वचन देती है कि वो कोई त्रुटी नहीं करेंगी, उतरा अभिमन्यु को कहती है। प्रिय आप मेरा धन।हो और मुझे वापस मेरे पास चाहिए। अभिमन्यु हाँ उतरा तुम्हारा धन तुम्हारे पास अवश्य आएगा, उसका रूप अलग हो सकता है, उसका मूल्य नहीं, मैं नहीं तो मेरी वीरता का गौरव बन कर आएगा। ऐसा कहकर अभिमन्यु वहाँ से अपनी माता को अन्य बड़ों के शिविर की ओर चला जाता है। युद्ध भूमि जाने से पहले वे सबको आशीर्वाद लेता है। सब उसे जीवित रहो का आशीर्वाद देते है बस श्रीकृष्ण उसे यशसवी भी रहो का आशीर्वाद देते हैं। द्रौपदी कहती हैं, वासुदेव आज मेरा पुत्र जीवन के सबसे कठिन युद्ध में जा रहा है। तुमने इसे जीवित रहने का आशीर्वाद न देकर यशस्वी रहने का आशीर्वाद क्यों दिया? वासुदेव कहते हैं। मुझे नहीं पता आज युद्ध में क्या होगा पर मुझे अपनी दी हुई शिक्षा और अभिमन्यु के कौशलता पर पूर्ण विश्वास है। आज उसकी यशगाथा सभी दिशाओं में गूंजेगी। विरोधी पक्ष भी उसकी वीरता की तारीफ करने से स्वयं को रोक नहीं पाएंगे। मुझे उसकी वीरता और युद्ध कौशल पर इतना विश्वास है कि युगों तक उसका नाम वीर महारथी में रहेगा। कर्ण और अर्जुन के सम्मान।युद्ध के तेरहवें दिन सब युद्ध भूमि में पहुँच जाते हैं। अर्जुन भी उस आत्मघाती सेना से द्वंद करने के लिए तैयार रहता है। वो दूसरे पक्ष के दुर्योधन और द्रोणाचार्य हैं। अपनी रणनीति को आगे बढ़ाने के लिये सभी तैयार थे। अपने शंखनाद से युद्ध आरंभ करते हैं एक के बाद एक। शंख की प्रचंड ध्वनि गूंजती है और फिर युद्ध आरंभ हो जाता है। दुर्योधन की तरफ से एक आत्मघाती सेना पांडवों की तरफ बढ़ती है, जो यह प्रतिज्ञा लेती है। या तो वे अर्जुन को मारेंगे या फिर अर्जुन के हाथों मारे जाएंगे। अर्जुन की टुकड़ी और आत्मघाती सेना का आक्रमण।बड़ा भयानक और विनाशकारी होता है। थोड़े ही समय में वहाँ पर सैनिकों का शव ही शव नजर आने लगता है। अर्जुन आक्रमण करता हुआ उस आत्मघाती सेना को युधिष्ठिर से बहुत दूर ले जाती है।जब द्रोणाचार्य और दुर्योधन यह निश्चित कर लेते हैं कि अर्जुन अब यहाँ जल्द नहीं आ सकता है, तब द्रोणाचार्य अपनी योजना पर कार्य करते हैं तो ऐसा गठन की रचना करते हैं, जिससे प्रवेश करना तो मुश्किल है ही उससे मुश्किल है उससे बाहर निकलना। ये है चक्रव्यूह की रचना जो द्रोणाचार्य, युधिष्ठिर को बंदी बनाने के लिए करते हैं, चक्रव्यूह को पार करना श्रीकृष्ण, अर्जुन, भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा और प्रद्युम्न को ही आता था। श्रीकृष्ण, जो इस युद्ध में अस्त्र नहीं उठाएंगे। अर्जुन उस आत्मघाती सेना से लड़ते लड़ते दूर चला जाता है। जो शेष बचे हैं, वे भी कौरवों की तरफ होते हैं। इसलिए सभी चक्रव्यूह को देखकर चिंतित हो जाते हैं कि अब इस चक्रव्यूह को कौन पार करेगा? क्योंकि अर्जुन तो अब वहाँ है नहीं।और उनमें से किसी को चक्रव्यूह पार करना नहीं आता था। अब उन सब को दुर्योधन की योजना समझ में आ गयी कि यह उनकी योजना थी की अर्जुन को चक्रव्यूह से दूर भेजना और पीछे से वो महाराज युधिष्ठिर को बँधी बना सके।भीम कहता है ब्रह्ताश्री हमें आज चक्रव्यूह को पार करना ही होगा वरना ये लोग आप को बँधी बना लेंगे और ये युद्ध आज ही खत्म हो जाएगा। अभिमन्यु कहता है महाराज में चक्रव्यूह में प्रवेश कर सकता हूँ। युधिष्ठिर कहता है नहीं पुत्र, हम तुम्हें इस चक्रव्यूह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दे सकते।जानते नहीं हो ये चक्रव्यूह इतना खतरनाक है इसकी सात परत को भेदकर फिर बाहर निकला जाता है। हर परत के बाद योद्धा की शक्ति बढ़ती जाती है और ये घूमता रहता है, जिसके कारण इसे बहार निकलने का मार्ग बदलता रहता है। इसके अंत में शक्तिशाली महारथी होते हैं, जिन्हें पराजित करके चक्रव्यूह से बाहर निकला जाता है। ये मौत का कुआं है। अगर इसमें कोई प्रवेश कर भी लेता है तो वह अंत में इतना थक जाता है कि उसमें अस्त्र उठाने की भी शक्ति नहीं होती इसलिए पुत्र हम तुम्हें चक्रव्यूह में जाने की अनुमति नहीं दे सकते अभिमन्यु कहता है महाराज इस समय मैं एक योद्धा हूँ और मेरा पहला धर्म है अपने राजा की रक्षा करना आप मुझे अपना कर्तव्य करने से रोक नहीं सकते महाराज वैसे भी यहाँ कोई नहीं है जो चक्रव्यूह में प्रवेश कर सकें। महाराज मुझे चक्रव्यूह में प्रवेश करना आता है, बस बाहर निकलना नहीं आता। मेरे पास एक योजना है। जैसे ही मैं चक्रव्यूह में प्रवेश करने के लिए मार्ग बनाऊंगा, वैसे ही आप भी मेरे पीछे चक्रव्यूह में प्रवेश कर जाना।सभी को अभिमन्यु की योजना उचित लगी और सभी अभिमन्यु की बात पर सहमत हो जाते हैं और युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव अभिमन्यु के साथ चक्रव्यूह में प्रवेश करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
अभिमन्यु का चक्रव्यूह में प्रवेश।
अभिमन्यु चक्रव्यूह में प्रवेश के लिए अपने धनुष ने तीरों की वर्षा कर देता है और जल्द चक्रव्यूह में प्रवेश का मार्ग बना लेता है और चक्रव्यूह में प्रवेश कर जाता है। जैसे ही युधिष्ठिर और भीम प्रवेश करने लगते हैं चक्रव्यूह का मार्ग होता है और जयद्रथ उन लोगों को चक्रव्यूह में प्रवेश करने ही नहीं देता है। अभिमन्यु अकेले ही चक्रव्यूह में आगे बढ़ता है। जब बहुत देर तक मदद नहीं मिलती तो वो पीछे मुड़कर देखता है तो उसके पीछे कोई नहीं होता है। अभिमन्यु बड़ी वीरता के साथ आगे बढ़ते हैं तो उसका सामना दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण के साथ युद्ध होता है। लक्ष्मण अभिमन्यु पर आक्रमण करता है। वो एक बाद एक आक्रमण करता रहता है। अभिमन्यु का वध करने के लिए हमला करता है। इससे क्रोधित हो अभिमन्यु लक्ष्मण पर प्रहार करके उसका सिर अलग कर देता है। इस चक्रव्यूह में अभिमन्यु कई राजकुमार को मार देता है। अभिमन्यु अपने बाणों की वर्षा करते हुए आगे बढ़ता है। आगे उसका सामना। बृहद्वल से होता है जो भगवान श्री राम के वंशज माने जाते हैं। अभिमन्यु एक प्रहार से ही बृहद्वल के प्राण ले लेता है बृहद्वल अभिमन्यु का मस्तक काटने पर उतारू था। उससे बचने के लिए अभिमन्यु एक ही बाण से उसके शरीर से प्राण अलग कर देता है। अभिमन्यु चक्रव्यूह के सातवें द्वार से प्रवेश करता है।वहाँ पर द्रोणाचार्य, कृपाचार्य कर्ण, शकुनी, अश्वथामा,कृतिवर्मा उसकी प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। अभिमन्यु का शौर्य देख कर अच्छे अच्छे महाराथी चिंतित थे। जब वो बृहद्वल को एक प्रहार में मार देता है तो अभिमन्यु से अच्छे अच्छे योद्धा भयभीत हो जाते हैं। अभिमन्यु अपने समीप सात सात महारथियों। को देखकर क्षण भर के लिए भी।विचलित नहीं होता है बल्कि उत्साह के साथ उनके साथ युद्ध करता है। हर योद्धा को अपना शौर्य का परिचय देता है, शकुनी और बाकी योद्धा समझ जाते हैं अकेले युद्ध करने से तो वो अभिमन्यु को नहीं हारा पाएंगे। इस समय। रणभूमि में अभिमन्यु हाहाकार मचाये हुए। था।उसी समय अभिमन्यु की ही उम्र का दुर्व्यसन ( दूँशासन का बेटा ) आया। उसने पहले अभिमन्यु के सारथी को मारा फिर बाणों से बीध दिया किंतु वे फिर भी अभिमन्यु को रोकने में असमर्थ थे।हालांकि अभिमन्यु युद्ध करते हुए थक चुका था किंतु अभिमन्यु रुकने वालों में से नहीं था। अभिमन्यु दुर्व्यसन पर जवाबी हमला किया तो अश्वत्थामा ने अभिमन्यु के बाण को ही रोक दिया। गंभीर घायल होने के बाद भी अभिमन्यु किसी के वश में।नहीं आता है फिर करण ने द्रोणाचार्य से परामर्श करके पहले अभिमन्यु के धनुष को काटा। उसके बाद कृति वर्मा ने अभिमन्यु के घोड़ों को मारा और कृपाचार्य ने उसके दोनों अंगरक्षकों को मार डाला। फिर छह महारथियों ने मिलकर घेर लिया और फिर बाणों से बींध डाला।अभिमन्यु फिर भी नहीं रुका और तलवार से शत्रुओं के गले रेंगने लगा तो द्रोणाचार्य ने उसकी तलवार को मूंठ से तोड़ डाला। अभिमन्यु ने ढाल उठाई तो उन्होंने ढाल के भी टुकड़े कर दिए। इस बीच करण अपने हमला तेज कर देता है। अभिमन्यु अस्थमा पर टूट पड़ता है। बुरी तरह घायल होने के बाद भी उसकी ऊर्जा में कमी नहीं आई। वो गदा से अश्वत्थामा के दोनों।के अंगरक्षकों चारों घोड़ों को मार देता हैं फिर दुर्व्यसन अभिमन्यु पर हमला करता है, वे दोनों नीचे गिर जाते हैं।तुरंत उठकर अभिमन्यु के मस्तक पर गद्दे का प्रहार करता है, जिससे अभिमन्यु अचेत होने लगता है। उसी समय कृपयाचार्य कृतवर्मा, द्रोणा अश्वथामा और शकुनी अभिमन्यु पर तलवार से हमला करते हैं। उस समय अभिमन्यु निहत्था होता है जब एक साथ ये महारथी हमला करते हैं।फिर अभिमन्यु रथ का पहिया उठाकर उनसे युद्ध करता है। किंतु अब अभिमन्यु बहुत थक चुका था और घायल भी था। वो अब ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। वे सभी महारथी मिलकर एक साथ अभिमन्यु पर हमला करते हैं जिससे वो भूमि पर गिर जाते हैं। अभिमन्यु अत्यंत पीड़ा में होता है तब कर्ण कहता है पुत्र आज तुमने अपने शौर्य से बड़े बड़े महारथियों को पीछे छोड़ दिया।ये मेरा दुर्भाग्य है, मैं तुम्हारे सामने युद्ध करने के लिए खड़ा हूँ। आज हम तुम्हारी वीरता और शौर्य के आगे सवयं को निम्न समझते हैं।पुत्र हो सके तो मुझे क्षमा करना अत्यंत पीड़ा सहते सहते अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो जाता है। अभिमन्यु को पता था वो चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाएगा। फिर भी उसने एक योद्धा धर्म का पालन किया, पुत्र होने का धर्म निभाया। अभिमन्यु पराकर्मी वीर और शौर्यवान योद्धा था महाभारत में।सबसे दर्दनाक मृत्यु अभिमन्यु की होती है, जिससे मारने की लिए कौरव पक्ष ने युद्ध के नियम का भी उल्लंघन किया। अभिमन्यु की मौत से पांडव पक्ष अत्यंत दुखदायी था, जिससे पूरे पांडव पक्ष चरमरा जाता है किंतु विरोधी पक्ष में अभिमन्यु की वीरता शौर्य की चर्चा थी। कहते हैं अगर नियम के अनुसार युद्ध होता तो अभिमन्यु नहीं मरता। अब महाभारत का युद्ध विकेट रूप लेने वाला था, अब कोई नियम की मर्यादा नहीं थी क्योंकि एक बार नियम टूटने पर सारे नियम टूट रहे थे, अब दोनों पक्ष महारथी मारे जा रहे थे। जयद्रथ, भीष्म, द्रोणाचार्य और दुर्व्यसन और पांडव पक्ष के घटोत्कच उप पांडव मारे जाते हैं और फिर दुशासन भी मारे जाते हैं। युद्ध 18 वें दिन पर पहुँच जाता है जब सभी योद्धा मारे जाते हैं। दुर्योधन भी मरने की कगार पर होता है। केवल 18 योद्धा शेष बचते हैं।महाभारत के युद्ध में बहुत जन हानि हुई। वहाँ की भूमि और मिट्टी रक्त से लाल हो गई,कहते हैं कुरुक्षेत्र के मैदान की मिट्टी आज भी लाल है। अश्वथामा अपने मित्र दुर्योधन की ऐसी हालत देखकर दुखी होता है औरदुख के मारे वह अस्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे।बच्चे पर छोड़ता है, जिससे उतरा की हालत बिगड़ जाती है। उतना अभिमन्यु को दिए हुए वचन का पालन करती है। अपनी हिम्मत टूटने नहीं देती। तब अर्जुन और श्रीकृष्ण को पता चलता है तो वे अश्वत्थामा को पकड़ लेते हैं।अस्त्र वापस बुलवाने के लिए कहते हैं किंतु अश्वथामा को अस्त्र छोड़ना आता था, उसे वापस बुलाना नहीं। ये सुनकर अर्जुन अश्वत्थामा को जान से मारने वाले होते हैं पर श्रीकृष्ण उसे रोक देते हैं। वे अश्वथामा की मणि निकाल उसे जिंदा छोड़ देते हैं।दूसरी तरफ उत्तरा दर्द से तड़प रही थी। श्रीकृष्ण तुरंत उतरा के शिविर जाते है, उसकी गर्भ की रक्षा करते हैं।उत्तरा को पुत्र होता है जो परीक्षित नाम से जाना जाता है। परीक्षित महान राजा था, उसने ही भागवत पुराण का महत्त्व समझाया।
भागवत पुराण और गीता का ज्ञान दोनों महाभारत से प्राप्त हुआ।
वे ही कलयुग के पहले राजा थे। अभिमन्यु का पुत्र किसी भी प्रकार से अभिमन्यु से कम नहीं था। वह भी कलयुग को खत्म करने वाला था। फिर उसी समय अकाशवाणी होती है जो परीक्षित को रोक देती है। कलयुग को खत्म करने से वे नीती होने से रोक सकता है नीतियों में कलयुग आना लिखा था।परीक्षित के राज़ में कलयुग आगे नहीं बढ़ा था।
FAQs:
अभिमन्यु कौन थे?
अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र, अभिमन्यु ने महाभारत के युद्ध में अद्वितीय साहस दिखाया और चक्रव्यूह में लड़ते हुए वीरगति पाई।अभिमन्यु चक्रव्यूह में क्यों फंसे?
उन्होंने गर्भ में चक्रव्यूह में प्रवेश का ज्ञान प्राप्त किया, लेकिन सुभद्रा के सो जाने के कारण बाहर निकलने का तरीका नहीं जान पाए।महाभारत में अभिमन्यु का क्या महत्व था?
अभिमन्यु की वीरता और बलिदान ने पांडवों को द्रविड़ रणनीति को बदलने और युद्ध जीतने के प्रति मजबूर किया।