वीर तेजाजी महाराज की अमर गाथा: राजस्थान के महान लोक देवता की संपूर्ण कहानी | सांपों के देवता
वीर तेजाजी: एक मानवीय योद्धा से लोक देवता तक की अमर गाथा
राजस्थान की धरती पर अनगिनत वीर योद्धाओं ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने वचन, वीरता और त्याग से अमरत्व प्राप्त किया। इन्हीं में से एक नाम है वीर तेजाजी महाराज का, जो एक साधारण किसान के पुत्र से राजस्थान के सबसे पूजनीय लोक देवता बने। उनकी कहानी केवल वीरता की नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाओं, पारिवारिक रिश्तों की जटिलताओं, और सामाजिक न्याय के संघर्ष की है।जन्म और प्रारंभिक जीवन: एक सामान्य परिवार में असामान्य तेज
विक्रम संवत 1130, माघ शुक्ल चतुर्दशी के दिन (29 जनवरी 1074), राजस्थान के नागौर जिले के खरनाल गांव में नागवंशी धौलिया गोत्र के जाट परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ। उसके पिता ताहड़ देव (थिरराज) खरनाल गणराज्य के मुखिया थे और माता रामकंवरी भगवान शिव की प्रबल उपासिका थीं।
जन्म के समय बच्चे के चेहरे पर इतना तेज था कि देखने वाले चकित रह जाते थे। इस दिव्य आभा को देखकर माता-पिता ने उसका नाम "तेजा" रखा। मान्यता के अनुसार, माता रामकंवरी को नाग देवता के आशीर्वाद से यह पुत्र प्राप्त हुआ था, जो बाद में उनके जीवन की घटनाओं में गहरा अर्थ रखने वाला था।
उस समय मरुधरा में छोटे-छोटे गणराज्य थे। खरनाल गणराज्य में 24 गांव सम्मिलित थे और तेजाजी के पिता इस गणराज्य के गणपति थे। बचपन से ही तेजा में असाधारण गुण दिखाई देने लगे थे। उनके साहसिक कारनामे देखकर गांव के लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे।
बचपन का विवाह और पारिवारिक जटिलताएं
उस युग की प्रथा के अनुसार, तेजाजी का विवाह मात्र 9 महीने की आयु में ही 6 महीने की पेमल से कर दिया गया था। पेमल पनेर गणराज्य के मुखिया राव रायमल मुथा की पुत्री थी और यह विवाह राजनीतिक गठबंधन का प्रतीक था।
लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था। विवाह के तुरंत बाद ही दोनों परिवारों के बीच एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटित हुई। पेमल के मामा खाजू-काला इस रिश्ते के विरोधी थे और इन्होंने ताहड़ देव पर हमला कर दिया। अपने और अपने परिवार की रक्षा में ताहड़ देव को तलवार से खाजू-काला को मारना पड़ा।
इस घटना से पेमल की मां बोदल दे बेहद क्रोधित हो गई और उसने प्रतिज्ञा ली कि वह अपनी बेटी को हत्यारे के घर कभी नहीं भेजेगी। यही कारण था कि तेजाजी को वर्षों तक अपने विवाह के बारे में पता ही नहीं था।
युवावस्था: सामाजिक सुधारक और कृषि वैज्ञानिक
तेजाजी में बचपन से ही सामाजिक न्याय की प्रबल भावना थी। एक बार मंदिर के बाहर उन्होंने देखा कि पांचू मेघवाल नाम के एक बच्चे को पुजारी भूख से प्रेरित होकर मंदिर में प्रवेश करने और प्रसाद लेने के लिए पीट रहा था।
तेजाजी ने तुरंत पुजारी को रोका और बच्चे को सीने से लगाकर सांत्वना दी। जब पुजारी ने जात-पात का हवाला दिया, तो तेजाजी ने उसे समझाया: "छोटी जाति की सबरी के जूठे बेर भी तो भगवान राम ने खाए थे। श्रीकृष्ण भी गुर्जरियों से माखन चुराकर खाते थे। ठाकुर जी का निवास केवल मूर्ति में नहीं, हर प्राणी में है।"
इस घटना के बाद पांचू मेघवाल तेजाजी के साथ रहने लगा, जो उनकी जाति-भेद विरोधी सोच का प्रमाण था। तेजाजी के मंदिरों में आज भी निम्न जाति के लोग ही पुजारी का काम करते हैं, जो उनके सामाजिक सुधार के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
कृषि के क्षेत्र में भी तेजाजी ने क्रांतिकारी योगदान दिया। उन्होंने किसानों को बीजों को उछालकर बोने के बजाय हल से जमीन को जोतकर कतार में बोने की विधि सिखाई। उन्होंने कीट-पतंगों से फसल को बचाने की नई तकनीकें भी बताईं। इसीलिए उन्हें "कृषि वैज्ञानिक" भी कहा जाता है।
भाभी का ताना और विवाह की खोज
ग्यारहवीं सदी के राजस्थान में खेती की शुरुआत का रीति-रिवाज था। हलसोतिया की प्रथा के अनुसार मुखिया को पहली बारिश के बाद हल चलाकर खेती की शुरुआत करनी पड़ती थी।
एक दिन जब तेजाजी खेत में हल चला रहे थे, तो उनकी भाभी खाना लेकर देर से पहुंची। नाराजगी जताने पर भाभी ने व्यंग्य से कहा: "तुम्हारी परणाई (पत्नी) तो अपने मायके में मौज कर रही है, उसे ले आओ तो वो जल्दी खाना ले आएगी।"
यह ताना तेजाजी के दिल में तीर की तरह चुभा। घर लौटकर जब उन्होंने मां रामकंवरी से पूछा, तब जाकर उन्हें अपने विवाह के बारे में पता चला। मां ने बताया कि पेमल के मामा की मृत्यु के कारण यह बात छुपाई गई थी और इसी घटना का बदला लेने के लिए पेमल की मां ने बालिया नाग और धर्मभाई कालिया मीणा लुटेरों से मिलकर षड्यंत्र रचा था, जिसमें ताहड़ देव और आसकरण की हत्या भी हुई थी।
ससुराल की यात्रा: अपमान और दर्द
सच्चाई जानकर तेजाजी ने अपनी घोड़ी "लीलण" पर सवार होकर ससुराल पनेर की यात्रा की। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि उनकी सास गायों से दूध निकाल रही थी। घोड़े की टापों की आवाज से गायें डर गईं और दूध गिर गया।
क्रोधित सास ने अनजाने में कड़वे शब्द कहे: "काल को खावड़ो कुण आयो?" (काल का खाने वाला कौन आया है?) यह कटु वचन तेजाजी के दिल पर गहरा घाव कर गया। अपमानित महसूस करते हुए वे तुरंत वापस लौटने लगे।
ससुराल वालों ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की। पेमल ने किसी तरह उन्हें एक रात रुकने को राजी किया, लेकिन तेजाजी ने ससुराल में न रुकते हुए लाछा गुजरी के घर रुकना उचित समझा।
नाग देवता से वचन: जीव दया का परिणाम
उसी रात एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। चोरों ने लाछा गुजरी की गायों को चुरा लिया। रोती हुई लाछा को देखकर तेजाजी का हृदय द्रवित हो गया। बिना एक पल सोचे उन्होंने उसे वचन दिया कि वे उसकी गायों को वापस लाएंगे।
गायों का पीछा करते हुए सुरसुरा के पास एक अद्भुत दृश्य देखा। बिजली गिरने से लगी आग में एक नाग-नागिन का जोड़ा फंसा हुआ था। नागिन तो मर चुकी थी, लेकिन नाग जलने से तड़प रहा था।
जीव दया से भरपूर तेजाजी ने तुरंत अपने भाले की नोक से नाग को आग से बाहर निकाला। लेकिन नाग उनकी इस सहायता से खुश होने के बजाय क्रोधित हो गया।
नाग ने कहा: "हे वीर, तुमने मेरा अन्याय किया है। मैं सौ वर्ष की आयु पूरी कर चुका था और इस अग्नि में प्रवेश कर मोक्ष प्राप्त करना चाहता था। तुमने मुझे फिर से जन्म-मरण के चक्र में बांध दिया है। मैं तुम्हें अवश्य डसूंगा।"
तेजाजी ने हाथ जोड़कर कहा: "नागराज, मैंने तो केवल आपके प्राण बचाए हैं। अगर मुझसे कोई भूल हुई है तो मैं क्षमा मांगता हूं। लेकिन अभी मुझे लाछा को दिए वचन को पूरा करना है। मैं चांद, सूरज और इस खेजड़े के वृक्ष को साक्षी मानकर वचन देता हूं कि गायों को छुड़ाकर 8 पहर में वापस लौटूंगा। तब आप मुझे डस लेना।"
गौरक्षा युद्ध: एक अकेले योद्धा का संघर्ष
नाग के रास्ता छोड़ देने पर तेजाजी मीणा डकैतों के पीछे चले। वर्तमान तिलोनिया गांव के नजदीक उन्होंने दो चोरों को मार गिराया। मंडावरिया की पहाड़ियों के पास कालिया मीणा ने डेरा डाला था।
तेजाजी ने कालिया मीणा को ललकारा और गायों को छोड़ने का प्रस्ताव रखा। अकेले तेजाजी को देखकर कालिया मीणा हंसा और लगभग ढाई सौ डाकुओं के साथ हमला कर दिया।
विश्व के इतिहास में शायद ही कोई इससे भयानक युद्ध हुआ होगा। एक तरफ ढाई सौ चोर और दूसरी तरफ अकेला शेषनाग के अंश तेजाजी। उनका बिजलसार भाला चमकता रहा और देखते ही देखते मीणाओं की संख्या कम होने लगी।
कालिया मीणा अपने गिरोह का नाश होता देख भाग गया, लेकिन भागते समय लाछा की गायों में से एक बछड़ा "काणा केरड़ा" ले गया। तेजाजी ने गायों को वापस लाछा को सौंप दिया, लेकिन जब पता चला कि एक बछड़ा गायब है, तो वे उसे लाने के लिए पुनः निकल पड़े।
इस बार कालिया मीणा ने सौ डाकुओं के साथ फिर से हमला किया। इस भीषण युद्ध में तेजाजी की पूरी काया जगह-जगह से घायल हो गई। उनके शरीर पर कोई भी स्थान ऐसा नहीं बचा था जो घावों से भरा न हो।
वचन की पूर्ति: महान बलिदान
लहू-लुहान अवस्था में तेजाजी ने काणा केरड़ा को भी वापस लाछा को सौंप दिया। अब समय आ गया था अपने वचन को पूरा करने का। घायल अवस्था में भी वे नाग देवता के पास पहुंचे।
नाग ने उनकी दशा देखकर कहा: "हे वीर, तुम्हारा पूरा शरीर घावों से भरा है। मैं कहां डसूं? मैं तुम्हें नहीं डस सकता।"
लेकिन वचनबद्ध तेजाजी ने कहा: "नागदेव, अगर आज आप मुझे नहीं डसेंगे तो युगों-युगों तक मेरी जाट जाति पर, मेरे धौलिया कुल पर दाग लग जाएगा कि जाटों के बेटे ने वचन नहीं निभाया। हे नागदेव, मुझे वचनभ्रष्ट मत करो और मुझे डसो।"
तेजाजी ने अपना मुंह खोला और जीभ बाहर निकालकर कहा: "मेरे शरीर पर सब जगह घाव हैं, लेकिन मेरी जीभ पर कोई घाव नहीं है। आप यहां डस सकते हैं।देवत्व की प्राप्ति: मृत्यु से अमरत्व तक
तेजाजी की इस अतुलनीय वचनबद्धता को देखकर नाग गद्गद हो गया। उसने तेजाजी की जीभ पर डंसा और तुरंत वरदान दिया:
"हे तेज, तेरी वचनबद्धता को देखकर मैं तुम्हें वरदान देता हूं। जिस सर्पदंश के कारण तुम्हारी मृत्यु हो रही है, यदि कोई व्यक्ति सर्पदंश के कारण तुम्हारी शरण में आएगा तो उसे सर्पदंश से मुक्ति मिलेगी। तुम सांपों के देवता बनोगे।"
भाद्रपद शुक्ल दशमी, संवत 1160 (28 अगस्त 1103) को सुरसुरा में तेजाजी की मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी पेमल भी उनके साथ सती हो गई।
मृत्यु से पहले आकाशवाणी हुई: "भविष्य में जो कोई भी सर्पदंश से पीड़ित होकर तेजाजी के नाम की तांत बांधेगा, वह बच जाएगा। तेजाजी का नाम सदा-सदा के लिए संसार में अमर रहेगा।"
लोक देवता के रूप में प्रतिष्ठा
तेजाजी की मृत्यु के बाद जनसाधारण में उनकी अलौकिकता की मान्यता फैलने लगी। उनके वचनबद्धता, गौरक्षा, सामाजिक न्याय, और आत्मबलिदान की गाथाएं गांव-गांव में गाई जाने लगीं।
राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, और हरियाणा में तेजाजी के मंदिर बनने लगे। उन्हें "सांपों के देवता", "गौरक्षक देवता", और "धौलिया वीर" के नाम से पुकारा जाने लगा।
तेजाजी के मंदिरों को "थान" कहा जाता है और पुजारी को "घोड़ला" कहते हैं। उनकी मूर्ति में उन्हें तलवारधारी अश्वारोही योद्धा के रूप में दिखाया जाता है, जिनकी जीभ पर सर्प डसा हुआ है।
सामाजिक प्रभाव और आध्यात्मिक महत्व
तेजाजी का सामाजिक सुधारक के रूप में योगदान अतुलनीय था। उन्होंने जाति-पांति का विरोध किया, निम्न वर्ग को मंदिरों में प्रवेश दिलाया, और पुरोहितवाद के आडंबरों का विरोध किया।
कृषि वैज्ञानिक के रूप में उनके योगदान से किसान समुदाय आज भी उन्हें "कृषि के देवता" मानता है। उन्होंने खेती की नवीन तकनीकें सिखाईं और कृषि उत्पादन बढ़ाने में योगदान दिया।
आध्यात्मिक दृष्टि से तेजाजी को भगवान शिव का ग्यारहवां अवतार माना जाता है। लोगों की मान्यता है कि सर्पदंश के समय तेजाजी के नाम की तांत बांधने से विष का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
तेजा दशमी: अमर उत्सव
हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा दशमी मनाई जाती है। इस दिन हजारों श्रद्धालु खरनाल, सुरसुरा, परबतसर और अन्य तेजाजी मंदिरों में दर्शन के लिए आते हैं।
परबतसर में लगने वाले पशु मेले में लाखों लोग भाग लेते हैं। भक्तगण ढोल-नगाड़े के साथ बिंदोरी (जुलूस) निकालते हैं और तेजाजी से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं।
निष्कर्ष: मानवीय गुणों से देवत्व तक
वीर तेजाजी की कहानी केवल एक योद्धा की वीरगाथा नहीं है। यह एक सामान्य इंसान की असामान्य यात्रा है, जो अपने मानवीय गुणों - वचनबद्धता, करुणा, न्याय, और आत्मबलिदान के कारण देवत्व तक पहुंचा।
आज भी जब कोई व्यक्ति सांप के काटने पर तेजाजी का नाम लेता है, जब कोई किसान बेहतर फसल के लिए प्रार्थना करता है, या जब कोई व्यक्ति सामाजिक न्याय की मांग करता है, तो वे सभी तेजाजी के आदर्शों को ही आगे बढ़ा रहे होते हैं।
तेजाजी की गाथा इस बात का प्रमाण है कि सच्चा देवत्व बाहरी चमक-दमक में नहीं, बल्कि मानवीय गुणों की चरम अभिव्यक्ति में होता है। उनका जीवन आज भी हमें सिखाता है कि वचन की शक्ति, दया का महत्व, और न्याय के लिए संघर्ष कैसे एक साधारण इंसान को अमर बना सकता है।
इस प्रकार, एक धौलिया जाट किसान का बेटा तेजा, अपने मानवीय गुणों और दिव्य कर्मों के कारण "वीर तेजाजी महाराज" बनकर करोड़ों लोगों के हृदय में बस गया और राजस्थान की धरती पर सदा-सदा के लिए अमर हो गया।
FAQs:
प्रश्न 1: वीर तेजाजी महाराज कौन थे?
उत्तर: वीर तेजाजी महाराज राजस्थान के महान लोक देवता थे जो 11वीं सदी में खरनाल गांव में एक जाट परिवार में पैदा हुए थे। वे अपनी वचनबद्धता और गौरक्षा के लिए प्रसिद्ध हैं।
प्रश्न 2: तेजाजी को सांपों का देवता क्यों कहते हैं?
उत्तर: नाग देवता के वरदान के कारण तेजाजी को सर्पदंश से मुक्ति दिलाने की शक्ति मिली। आज भी सांप काटने पर उनके नाम की तांत बांधने से विष का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 3: तेजा दशमी कब मनाई जाती है?
उत्तर: हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा दशमी मनाई जाती है। इस दिन लाखों श्रद्धालु उनके मंदिरों में दर्शन करते हैं।
प्रश्न 4: तेजाजी के मुख्य मंदिर कहां हैं?
उत्तर: तेजाजी के मुख्य मंदिर खरनाल (जन्मस्थान), सुरसुरा (बलिदान स्थल), और परबतसर में हैं। राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश में हजारों मंदिर हैं।
प्रश्न 5: तेजाजी का सामाजिक योगदान क्या था?
उत्तर: तेजाजी ने जाति-पाति का विरोध किया, कृषि तकनीकों में सुधार लाया, और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया। उन्हें कृषि वैज्ञानिक भी कहा जाता है।