पृथ्वीराज चौहान की गौरवशाली गाथा | अंतिम हिंदू सम्राट | तराइन का युद्ध | Prithviraj Chauhan

पृथ्वीराज चौहान की गौरवशाली गाथा | अंतिम हिंदू सम्राट | तराइन का युद्ध | Prithviraj Chauhan

परिचय:-

क्या आप जानते हैं कि भारत का एक ऐसा वीर योद्धा था जिसने अपने जीवन में कभी भी विदेशी आक्रमणकारियों को अपनी मातृभूमि पर पांव जमाने नहीं दिया? जी हां, हम बात कर रहे हैं महाराजा पृथ्वीराज चौहान की - "अंतिम हिंदू सम्राट" की गाथा की।

12वीं शताब्दी में जब पूरे भारत पर विदेशी आक्रमणों के बादल मंडरा रहे थे, तब एक 11 वर्षीय बालक ने अजमेर की गद्दी संभाली और इतिहास रच दिया। छह भाषाओं के ज्ञाता, कुशल योद्धा, और प्रेम की अमर कहानी के नायक - पृथ्वीराज चौहान की यह कहानी आपके रोंगटे खड़े कर देगी।

संयोगिता के साथ गंधर्व विवाह से लेकर मुहम्मद गौरी के साथ हुए महाकाव्यिक तराइन युद्ध तक - यह है भारत के सबसे वीर योद्धा की संपूर्ण गाथा जो आज भी हमें गर्व से सीना चौड़ा करने पर मजबूर कर देती है।

Prithviraj Chauhan The Last Hindu Emperor


पृथ्वी राज चौहान 12 वीं शताब्दी के चौहान वंश के अंतिम शासक थे उनका जन्म 1166 में गुजरात में हुआ उनके पिता का नाम सोमेश्वर चव्हाण माता का नाम कर्पूरी देवी था।एक छोटा भाई हरिराज था।वे बचपन से ही बहादुर, बुद्धिमान और युद्ध कौशल में निपुण थे।1177 मे अजमेर की गद्दी का भार सम्भाला।वे एक कुशल योद्धा और एक शिक्षक राजा थे।पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चंद बरदाई ने उनके जीवन पर आधारित  महाकाव्य।पृथ्वी राज़ रासो की रचना की थी। उन्होंने अपने नाना तोमर वंश के शासक आनंदपाल के उत्तराधिकारी के रूप में दिल्ली की गद्दी संभाली।हूँ ने।उनके साहस और बहादुरी के कारण अपना उत्तरदायी अधिकारी घोषित किया था।पृथ्वीराज के पिता की मृत्यु के बाद उन्हें अजमेर और दिल्ली दोनों की गद्दी मिली और उन्होंने अजमेर को अपनी राजधानी बनाई।पृथ्वी राज़ चौहान को छह भाषाओ ज्ञान था।उन्हें इतिहास, गणित, चिकित्सा और सैन्य विज्ञान जैसे विषयों का गहरा ज्ञान था। पृथ्वीराज चौहान को पिथौरा के नाम से भी जाना जाता था।पृथ्वीराज चौहान मारवाड़ के अंतिम हिंदू सम्राट थे जिन्होंने विदेशी आक्रमणकारी के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी।उन्होंने अपने राज्य में कभी भी विदेशी ताकत को पनपने नहीं दिया।पृथ्वीराज चौहान एक ऐसे शासक थे।जिसने अपने राज्य को विदेशी आक्रमण से बचाने के लिए जनता को एकजुट किया और युद्ध में लड़ने के लिए प्रेरित किया।पृथ्वीराज चौहान कला प्रेमी थे उन्होंने संस्कृति पुनरुत्थान को बढ़ावा दियाऔर भारतीय विरासत के संरक्षक के रूप में काम किया।उन्होंने कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए सिंचाई नहरों का निर्माण कराया।अपने राज्य को सुंदर बनाने के लिए कई मंदिर और अन्य सार्वजनिक निर्माण करवाए । दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद उन्होंने राय पिथौरा किले का निर्माण कराया जो उनके राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना।पृथ्वीराज रासो के अनुसार।11 वर्ष की आयु में उनका विवाह जयचंद की बेटी संयोगिता से गंधर्व विवाह हुआ।उनके विवाह को लेकर भी लोगों को कुछ अलग अलग मत हैं।एक मत के अनुसार जयसिंह ने अपनी बेटी संयोगिता का स्वयंवर किया तो उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को आमंत्रित नहीं किया। उस समय  में सभी राजाओं और युवराजों  को आमंत्रित किया  था, पृथ्वी राज चौहान को  आमंत्रित नहीं किया क्योंकि वे उनकी वीरता और प्रभाव से ईर्ष्या करते थे। जब की  संयोगिता भी पृथ्वीराज चौहान की वीरता से प्रभावित थी।क्योंकि उस समय पृथ्वीराज चौहान एक कुशल और मजबूत राजा थे और राजकुमारी  संयोगिता भी उनसे विवाह करना चाहती थी।जब पृथ्वीराज चौहान को आमंत्रित नहीं किया तो उन्होंने इसे अपना अपमान समझा।और राजा जयचंद को सबक सिखाने के लिए वे समय रोकने चले गए।जब ये सोमवार में पहुंचे तो राजकुमारी से योगीता पृथ्वीराज चौहान को अपना वन चुन लेती है।लेकिन राजा जयचंद अपनी बेटी का विवाह पृथ्वीराज चौहान से नहीं करना चाहते थे।तब पृथ्वीराज चौहान राजकुमारी  संयोगिता  का अपहरण करके दिल्ली ले आए। दूसरे मत के अनुसार पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता   एक दूसरे से प्रेम करते थे। राजा जयचंद उन दोनों का विवाह नहीं करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया।राजा जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान का अपमान करने के लिए उनकी मूर्ति  द्वार पार के रूप में रखवाई।स्वयंवर में राजकुमारी  संयोगिता ने मूर्ति को मारा पहनाकर उसे अपना पति घोषित किया।उस समय पृथ्वी राज चौहान मूर्ति के पीछे छिपे थे। वे तुरंत संयोगिता को घोड़े पर बैठाकर दिल्ली ले आए। 1178  मे मोहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण किया।गुजरात में नायकी देवी ने मोहम्मद गौरी को हराया और उसे वापस जाने पर विवश किया।नायकी देवी ने विदेशी आक्रमण को रोकने के लिए पृथ्वीराज चव्हाण से मदद मांगी, लेकिन उन्होंने उनका साथ नहीं दिया। पृथ्वीराज चौहान इस आक्रमण से समझ गए थे। कभी भी विदेशी हमला हो सकता है, इसलिए उन्होंने अपनी सेना को बढ़ाया।और लोगों को युद्ध के लिए प्रेरित करना शुरू किया।उन्होंने राजस्थान के छोटे छोटे राज्यों पर बीजेपी प्राप्त करके अपने राज्य का विस्तार किया।और दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।उन्होंने शक्तिशाली चन्देलो को पराजित किया।उन्होंने गुजरात के चालुक्यों को पर विजय पाने के लिएअभियान चलाया और वर्षों तक युद्ध चला, जिसमें अंत में उन्होंने विजय प्राप्त की।उनके पास 3,00,000 सैनिक और 300  हाथी थे।अंत में, जीस विदेशी आक्रमण के कारण पृथ्वीराज चौहान अपनी सेना बल बढ़ाया था।1191मे विदेशी आक्रमण कारी मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच तराइन में युद्ध हुआ। ये युद्ध पृथ्वीराज चौहान के लिए महत्वपूर्ण युद्ध था।उन्होंने तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गौरी को बुरी तरह से हराया और उन्हें अफगानिस्तान वापिस भागने पर मजबूर कर दिया। 1 साल बाद 1192 मे मोहम्मद गौरी एक बड़ी सेना के साथ वापस आया।और उन दोनों के बीच में तराइन का दूसरा युद्ध हुआ।की विशाल सेना से पृथ्वीराज  चौहान की सेना बड़ी वीरता के साथ लड़ी।ये इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई और उन्हें बंदी बना लिया गया और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।वे एक निपुण योद्धा थे और आवाज़ सुनकर लक्ष्य  को भेजने की क्षमता रखते थे।  पृथ्वी राज़ रासो मेउनके अद्भुत कौशल का वर्णन है।एक काल्पनिक कथा के अनुसार पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गजना ले जाया गया और उनकी आंखें फोड़ दी गयी।इस कथा के अनुसार पृथ्वीराज के कवि चंदबरदाई ने गौरी को धोखा देकर पृथ्वीराज का एक तीरंदाजी प्रदर्शन देखने के लिए प्रेरित किया। इस दौरान पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी की आवाज की दिशा में तीर चलाकर उन्हें मार डाला और फिर पृथ्वीराज और चंदर बरदाई ने एक दूसरे को मार डाला।  ऐतिहासिक साक्ष्यो से इस काल्पनिक  कथा का समर्थन नहीं होता, क्योंकि पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद मोहम्मद गौरी कई वर्षों तक शासन करते रहे।इतिहास कार के अनुसार पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु मोहम्मद गौरी के हाथों युद्ध में हुई थी।  पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद गौरी ने उनके पुत्र गोविंद राज़ को अजमेर की गद्दी पर बिठाया।जो गौरी का जागीरदार था। कुछ समय बाद पृथ्वीराज के भाई हरिराज ने गोविन्दराज को हटाकर गद्दी वापस छीन ली।सब्जी पड़ी है। पृथ्वीराज ने अपने शासन  के दौरान विदेशी आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया।उनकी हार से पूरे उत्तर भारत में इस्लामी शासन के प्रचार का मार्ग खुल गए और उन्हें भारत के मुस्लिम आक्रमणों के विरुद्ध अंतिम महान प्रतिरोध का प्रतिक माना जाता है। उनकी मृत्यु के बाद उत्तर भारत में इस्लाम धर्म फैलने लगा। एक मारवाड़ राजाओं ने उत्तर भारत में हिंदुत्व राज्य बनाए रखा था।

FAQ:-

प्र1: पृथ्वीराज चौहान कौन थे?
उ: पृथ्वीराज चौहान 12वीं शताब्दी के चौहान वंश के अंतिम महान शासक थे, जिन्हें "अंतिम हिंदू सम्राट" कहा जाता है।

प्र2: पृथ्वीराज चौहान का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उ: उनका जन्म 1166 में गुजरात में हुआ था। उनके पिता सोमेश्वर चौहान और माता कर्पूरी देवी थीं।

प्र3: संयोगिता और पृथ्वीराज का प्रेम प्रसंग क्या है?
उ: राजकुमारी संयोगिता और पृथ्वीराज का प्रेम विवाह इतिहास की सबसे रोमांचक कहानियों में से एक है। स्वयंवर में संयोगिता ने पृथ्वीराज को चुना था।

प्र4: तराइन का युद्ध क्यों प्रसिद्ध है?
उ: 1191 और 1192 में हुए तराइन के युद्ध भारतीय इतिहास के निर्णायक युद्ध थे, जहाँ पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी का सामना किया।

प्र5: पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु कैसे हुई?
उ: तराइन के दूसरे युद्ध में हार के बाद उन्हें बंदी बना लिया गया और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।

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