मणिकर्णिका घाट: वाराणसी का पवित्र और रहस्यमय महाश्मशान
परिचय:-
मणिकर्णिका घाट ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थान है।मणिकर्णिका घाट( बर्निंग घाट) जो मोक्षनगरी वाराणसी में है।वाराणसी में बहुत से घाट है, लेकिन मणिकर्णिका घाट दुनिया के सबसे पुराने घाटों में से एक हैं मणिकर्णिका को महाश्मशान घाट भी कहते हैं। मणिकर्णिका घाट की अग्नि कभी शांत नहीं होती। ये अंतिम संस्कार का सबसे पवित्र स्थान है।इस घाट का अलग ही सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्त्व है।यहाँ हर रोज़ कम से कम 108 अंतिम संस्कार होते हैं। कभी कभी तो ये संख्या बहुत बढ़ जाती है लेकिन 108 से कभी कम नहीं होती।हिंदू धर्म में 108 का विशेष महत्त्व है क्योंकि इसे पूर्णता का प्रतीक मानते है जप माला में भी 108 मोटी होते है। योग में भी 108 ऊर्जा केंद्र( नाड़ियों का जिक्र) होता है।108 को किसी भी संख्या से गुणा भाग कर लो, उसका योग नौ ही आता है।108 का योग भी नौ ही है।मणिकर्णिका घाट में चौबीसों घंटे चिता जलती रहती है।हिंदू धर्म में सूरज ढलने के बाद अंतिम संस्कार का विधान नहीं है।लेकिन मणिकर्णिका घाट में ऐसा नहीं है। इस घाट पे रात को भी चिताएं जलती रहती है।जो इस स्थान को विशेष बना देती है। मणिकर्णिका घाट पर अंतिम संस्कार करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इंसान जीवन मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है।इसलिए यह स्थान हिंदू धर्म में आध्यात्मिक रूप से विशेष स्थान रखता है।इसलिए लोग दूर दूर से अपने परिजन का अंतिम संस्कार करने के लिए मणिकर्णिका का घाट पर आते हैं ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके।इसलिए यहाँ पर एक साथ कई चिताएं जलती है।और उनके सगे संबंधी भी होते हैं। इस स्थान पर इतने सारे लोगों ने पर भी शांति और सन्नाटा पसरा रहता है। बस। चिताओं की अग्नि की आवाज़ सुनाई देती है। ऐसा लगता है जैसे कोई अदृश्य शक्ति इससे नियंत्रित करती हो?यहाँ की एक विशेष बात और है।यहाँ पर नदी उत्तर की तरफ बहती है जो बहाव की विपरीत दिशा है।कुछ मान्यताओं के अनुसार।मणिकर्णिका घाट पर माता सती के कान की बलिया गिरने के कारण शक्तिपीठ भी माना जाता है।बलिया गिरने के कारण इसमें एक पवित्र कुआं बना।जिससे इसका नाम मणिकर्णिका घाट पड़ा। मणिकर्णिका घाट को लेकर कुछ पौराणिक कथा प्रचलित है।
विष्णु और शिव की कथा। एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने भगवान शिव के लिए तपस्या की थी और अपने सुदर्शन चक्कर से कुंड खोदा था। तपस्या के दौरान उनके कान की मणिकर्णिका कुंड में गिर गई, जिसके बाद इस घाट का नाम मणिकर्णिका पड़ा।
x
दूसरी कथा। जो माता पार्वती और शिव की है माता पार्वती ने भगवान शिव को रोके रखने के लिए अपनी मणिकर्णिका ( कान की बाली ) यही छुपा दी थी और शिवजी से ढूंढने को कहा। शिवजी आज तक उसे ढूंढ नहीं पाए और अंतिम संस्कार के समय मुक्त हुई आत्मा से पूछते हैं क्या उसने देखी है?
एक अन्य कथा के अनुसार मणिकर्णिका घाट का संबंध सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र भी माना जाता है।(जो भगवान राम के पूर्वजहै।) उन्हें अपनी सत्यनिष्ठा के लिए कई कष्ट सहने पड़े। लेकिन उन्होंने सत्य का मार्ग नहीं छोड़।कहते हैं राजा हरिश्चंद्र को चांडाल ने यहीं से खरीदा था और उन्हें इस घाट पर प अंतिम संस्कार करने वाले लोगों से कर वसूलने का काम दिया था।
मणिकर्णिका घाट का कुछ एक अलग पहलू भी है। जो डरावनी कहानी को दर्शाता है। स्थानीय लोगों का मानना है की इस घाट पर कुछ लोगों की आत्माएं निवास करती हैं जिनका सही तरह से अंतिम संस्कार नहीं होता, उनकी आत्मा भटकती रहती है।टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार कुछ लोग इस स्थान पर गंगा नदी के उत्तर की ओर बहने को जो कि सामान्यत दक्षिण की ओर बहने के विपरीत है, अभी श्राप का परिणाम मानते है।कुछ लोग ही यहाँ के अधिक गमगीन माहौल से प्रभावित होते हैं, जो लोगों को बेचैन कर देता है। कुछ ऑनलाइन और स्थानीय लोगों द्वारा घाट पर हुए अशांतिकारीअनुभव जिनसे उनका भूत प्रेत से सामना भी शामिल है। इसके बारे में अनेक कहानियाँ और प्रचलित है।मणिकर्णिका घाट अत्यधिक धार्मिक महत्त्व का स्थान भी है और लोगों से अनुष्ठानों की गंभीरता को सम्मानित करने का आग्रह किया जाता है। मणिकर्णिका घाट मोक्ष का वह द्वार है जो आदमी को जन्म और मरण से मुक्त कर देता है। यह लेख विभिन्न स्रोतों की जानकारी पर आधारित है।
FAQs:-
मणिकर्णिका घाट का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
यह घाट अंतिम संस्कार का पवित्र स्थल है जहां मोक्ष की प्राप्ति मानी जाती है।क्यों मणिकर्णिका घाट पर रोजाना 108 शवों का अंतिम संस्कार होता है?
संख्या 108 हिंदू धर्म में पूर्णता का प्रतीक है और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है।मणिकर्णिका घाट से जुड़ी कौन-कौन सी पौराणिक कथाएं प्रसिद्ध हैं?
भगवान विष्णु और शिव की कथा, माता सती के कान की बाली गिरने की कथा और राजा हरिश्चंद्र से जुड़ी कथाएं।क्या मणिकर्णिका घाट पर भूत-प्रेत से जुड़ी कोई कहानियां हैं?
हाँ, स्थानीय लोग मानते हैं कि कुछ आत्माएं यहां भटकती हैं क्योंकि उनका सही अंतिम संस्कार नहीं हो पाया।